प्रिय सोहन,
स्नेह. मैं बाहर से लौटा तो तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा थी. पत्र और अंगूर साथ ही मिले.पत्र जो कि वैसे ही इतना मीठा था, और भी मीठा हो गया !
मैं आनंद में हूं. तुम्हारा प्रेम उस आनंद को और बढा देता है. सबका प्रेम उस आनंद को अनंतगुणा कर रहा है. एक ही शरीर कितना आनंद है, पर जिसे सब शरीर अपने ही लग रहे हों, उसके साथ सिवाय ईर्ष्शा करने के और क्या उपाय है ?
ईश्वर करे तुम्हें मुझसे ईर्ष्या हो ----, सबको हो, मेरी तो कामना सदा यही है.
माणिक बाबू ने भी बहुत प्रीतिकर शब्द लिखे हैं. उन्हें मेरा प्रेम कहना. बच्चों को भी बाहत बहुत प्रेम.
रजनीश के प्रणाम
१७ मार्च १९६५
Partial translation
"Dear Sohan,
Love. As I returned from the outing ‘was expecting your letter. The letter and the grapes are received together itself. The letter, which was as such sweet – became still sweeter!"