Letter written to Sw Chaitanya Veetaraga, to whom Osho addressed as Kamlesh, on 15 Dec 1970. Kamlesh Sharma is his legal name. It has been published in Antarveena (अंतर्वीणा), as letter #41.
acharya rajneesh
27 C C I CHAMBERS CHURCHGATE BOMBAY-20 PHONE 293782
प्रिय कमलेश,
प्रेम। मैंने नहीं -- स्वीकारा है तुम्हें स्वयं प्रभु ने।
अब मैं हूँ भी ?
देखो -- कहीं भी दिखाई पड़ता हूँ ?
पारदर्शी (transparant) भी होगया हूँ स्वयं को खोकर।
इसलिए, जिसके पास भी आखें हैं, वह मेरे आर-पार देख सकता है।
और तुम्हारे पास आखें हैं।
देखो -- संकोच छोड़ो -- कहीं भी मैं दिखाई पड़ता हूँ ?
मैं नहीं -- अब तो वही है।
और जब मैं कहता हूँ मैं -- तब वही कहता है।
इसलिए, बहुत बार मेरा मैं विनम्र भी नहीं मालुम पड़ता है।
क्योंकि, वह मेरा है ही नहीं।
और, जिसका है, उसके लिए क्या विनम्रता -- क्या अहंकार ?