Talk:Atma-Puja Upanishad, Bhag 2 (आत्म-पूजा उपनिषद, भाग 2) (UA-2, 18 talks)
अनुक्रम:
- 1. सजगता : स्वर्ग का द्वार
- 2. ज्ञानवृक्ष का निषिद्ध फल : काम
- 3. सजगता के दीप
- 4. मनुष्य-चेतना के विकास में बुद्ध का योगदान
- 5. पूर्ण चन्द्रमा का नैवेद्य
- 6. बुद्धत्व मानव की परम स्वतंत्रता
- 7. अन्तस्थ केन्द्र के मौन की ओर
- 8. मौन के तीन आयाम
- 9. दुःख--जागरण की एक विधि
- 10. मैं ही "वह" हूँ
- 11. संतुलन का मध्यबिंदु
- 12. आंतरिक एकालाप का भंजन
- 13. संतोष तथा स्वीकार से विकास
- 14. संतोष : वासनाओं का विसर्जन
- 15. विसर्जन : आकार-मुक्ति का उपाय
- 16. अनुभव : हिन्दू मन का सार
- 17. दो ध्रुवों का मिलन
- 18. साधना-पथ का सहज विकास
Shailendra states that two titles from TOC are wrong printed in the book:
1) for ch.16 should be दो ध्रुवों का मिलन, which matching with question and the discourse;
2) for ch.17 should be अनुभव : हिन्दू मन का सार, which matching with the sutra and discourse:
- सर्व निरामय परिपूर्णोऽहमस्मीति मुमुक्षणां मोक्षैक सिर्द्धिभवति इत्युपनिषद्।
- ‘मैं ही वह परिपूर्ण शुद्ध ब्रह्म हूँ’ -ऐसा जान लेना ही मोक्षोपलब्धि है।
--DhyanAntar 05:33, 31 August 2018 (UTC)