Letter written to Ma Yoga Sohan on 1 Apr 1965 in the morning. It is unknown if it has been published or not.
प्रिय सोहन,
श्री. माणिक बाबू और तुम्हारा पत्र मिला है। उदयपुर शिविर ७, ८, ९ और १० मई को आयोजित होरहा है। वहां तुम्हें चलना ही है। इसलिए यदि उदयपुर शिविर के बाद मेरे साथ जबलपुर आकर और यहां से बनारस जाओ तो अच्छा है। अभी बनारस जाने से शायद शिविर तक तुम्हारा लौटना न होसके। उस समय जबलपुर आओगी तो इसलिए भी अच्छा होगा कि मैं अपना सारा समय तुम्हें देसकूंगा। अभी तो मैं विश्वविद्दालय के काम में व्यस्त रहूँगा और कांति भी अपनी परीक्षा दे रहे होगी। तुम यहां आओ और मैं व्यस्त रहूँ -- यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए, सब से श्रेष्ठ तो यही है कि तुम उदयपुर के बाद बनारस जाओ और यदि किन्हीं कारणों से अभी ही बनारस जाना आवश्यक हो तो फिर जबलपुर बनारस से लौटकर रुको। यदि उदयपुर के बाद ही बनारस जाना तय करो तो फिर मुझे १२ अप्रैल को ३ बजे कल्याण मिल जाओ ताकि ३ दिन मेरे साथ तो रह सको। पूना का कार्यक्रम अभीतक पूरी तरह निश्चित नहीं होसका है। बंबई से उस संबंध में अभीतक कोई पत्र नहीं है। पत्र आते ही लिखूंगा; वैसे मैं अपनी ओर से १३ अप्रैल की रात्रि पूना के लिए दिया हूँ। १२ अप्रैल को कल्याण ही मिलो। वहां सबको मेरा प्रेम। जैसा तय करो, वैसा मुझे शीघ्र सूचित करदो।