Letter written on 1 Jun 1965 am

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Letter written to Ma Yoga Sohan on 1 Jun 1965 in the morning. It has been published in Prem Ke Phool (प्रेम के फूल) as letter #122.

आचार्य रजनीश

प्यारी सोहन,
प्रेम। तेरा पत्र मिला है। दूब में उसी जगह बैठा था,जब मिला। उस समय क्या सोच रहा था, वह तो तभी बताऊँगा जब तू मिलेगी ! स्मृतियां कितनी सुवास छोड़ जाती हैं !

जीवन प्रेम से परिपूर्ण हो तो कितना आनंद होजाता है। जगत् में केवल वे ही दरिद्र हैं जिनके ह्रदय में प्रेम नहीं है।

और, उनके सौभाग्य का क्या कहना जिनके ह्रदय में सिवाय प्रेम के और कुछ भी शेष नहीं रह जाता है ! संपदा और शक्ति के ऐसे क्षणों में ही प्रभु का साक्षात होता है।

मैंने तो प्रेम को ही प्रभु जाना है।

xxx

माणिक बाबू को मेरा प्रेम पहुँचाना । मेरा स्वास्थ्य ठीक है। मैं आज गाडरवारा जारहा हूँ। ६ जून की दोपहर तक वहां से लौटूंगा। लौटकर तेरे पत्रों को खोजूंगा !

रजनीश के प्रणाम

प्रभातः १ जून १९६५


See also
Prem Ke Phool ~ 122 - The event of this letter.
Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.