Letter written on 11 Jun 1965

From The Sannyas Wiki
Revision as of 05:09, 20 April 2020 by Dhyanantar (talk | contribs)
Jump to navigation Jump to search

Letter written to Ma Yoga Sohan on 11 Jun 1965. It is unknown if it has been published or not.

आचार्य रजनीश

सोहन,
प्रिय ! सुबह ही है। उठकर दूब पर आ बैठा हूँ। चिडियें गीत गारही हैं। सूरज निकल रहा है, लेकिन बदलियां उसे घेरे हुये हैं। कल रात्रि से ही आकाश बदलियों से भरा है।

फिर देर तक ऐसे ही बैठा रहता हूँ। प्रकृति में डूबकर रह जाना कितना आनंद है। प्रकृति में पुरे डूबने पर जिसका अनुभव होता है, उसका नाम ही परमात्मा है।

इस भांति डूब जाने को ही मैं प्रार्थना कहता हूँ।

xxx

माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष।

xxx

अष्टदिवसीय सत्संग चल रहा है रहा है। बहुत लोग उसमें उत्सुक हुये हैं और बहुत ही पवित्र वातावरण निर्मित हुआ है।

xxx

११ जून है आज और १७ जून को तू मिल रही है। रोज फासला एक दिन कम होजाता है तो बड़ी ख़ुशी होतीहै !

रजनीश के प्रणाम

११/६/१९६५


See also
Letters to Sohan ~ 015 - The event of this letter.
Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.