Letter written on 25 Jun 1965

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Letter written to Ma Yoga Sohan on 25 Jun 1965. It has been published in Ghoonghat Ke Pat Khol (घूंघट के पट खोल) as letter 13.

आचार्य रजनीश

प्यारी सोहन,
सुबह होगई है। सूरज निकल रहा है और रात्रि की सारी छायायें विलीन होगई हैं। कल बीत गया है और एक नये दिन का जन्म होरहा है। काश ! इस नये दिन के साथ हम भी नये होपावें ? चित्त पुराना ही रह जाता है। वह बीते कल में ही रह जाता है और इस कारण नये के स्वागत और स्वीकार में वह समर्थ नहीं हो पाता। चित्त का प्रतिक्षण पुराने के प्रति मर जाना बहुत आवश्यक है। तभी वह वर्तमान में जी पाता है। और, वर्तमान में जीना अद् भुत आनंद है !

xxx

तेरा पत्र नहीं। राह देख रहा हूँ। आज संध्या चांदा जाऊँगा और ३० की सुबह वापिस लौटूंगा। शेष शूभ। वहा सबको मेरे प्रणाम कहना।

माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष।

रजनीश के प्रणाम

२५/६/१९६५


See also
Ghoonghat Ke Pat Khol ~ 013 - The event of this letter.
Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.