Letter written to Ma Yoga Sohan on 13 Jul 1965. It is unknown if it has been published or not.
आचार्य रजनीश
प्यारी सोहन,
मैं बरेली से लौटा तो तेरे पत्र मिले। यह जानकर ख़ुशी हुई कि कम से कम तू कल्याण तो आ रही है ! मैं यह नहीं समझ सका कि किसीको तेरे आने में क्या असुविधा थी ? उससे तो उल्टे मुझे सुविधा ही होती। मैं बम्बई पहुँचू तो बात करूँगा। ऐसा करना कि तू बम्बई चलना और मुझे सौराष्ट्र की यात्रा पर विदाकर लौट आना; या फिर जैसा उचित समझे। माणिक बाबू का पत्र आयेगा तो मैं पूरी बात समझ सकूंगा। अभी कुछ पत्र बम्बई से आये हैं। मेरे प्रेम का गलत फायदा उठाने की वृति दिखाई पड़ती है। कुछ भी लिख देते हैं। यह भी नहीं सोचते कि मुझ जैसे व्यक्ति पर बंधन नहीं लगांये जासकते हैं। शेष कुशल है। कही तू दुखी न होरही हो इससे चिंतित हूँ। माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष।
तेरे प्यारे पत्र मेरे ह्रदय में बहुत से संगीत पैदा कर देते हैं। मैं उसकी रोज ही प्रतीक्षा करता हूँ। फिर, अभी तो तू २३ जुलाई को मिल रहीहै, इसमे बहुत आनंदित हूँ।