Letter written to Ma Yoga Sohan on 26 Jan 1966 in Nandurbar (Maharashtra). On the same date Osho wrote to her other letter. It is unknown if it has been published or not.
नंदुरबार
२६/१/१९६६
प्यारी सोहन,
प्रेम। मैं यहां आकर पछता रहा हूँ कि तुझे क्यों न बुला लिया ? पहाड़ी पर बने एक बहुत एकांत डाक बंगले में ठहरा हुआ हूँ। स्थान इतना रमणीक हैं कि बार बार तेरे साथ न होने का स्मरण आजाता है। रात्रि तो यहां कोई भी नहीं होता है। चौकीदार भी नीचे चला जाता है। फिर यहां बिजली भी नहीं है और लेम्प को बुझा देने पर इतना घुप्प अंधकार होजाता है कि उसका सौंदर्य शब्दों में बताना कठिन है। यही सोचता रहा हूँ कि तू होती तो कितनी खुश होती ? पर अब तो कुछ हो नहीं सकता है। कुसूरवार भी मैं ही हूँ। मैंने ही तुझे नहीं बुलाया। बुलाता तो तू आही जाती और माणिक बाबू तुझे भेज ही देते। इस स्वयं की भूल के कारण और भी दुख होरहा है। एक हीबात से मन को समझा रहा हूँ कि २ फ़रवरी को तो तू कल्याण मिल ही रही है।
माणिक बाबू को प्रेम।
बच्चों को आशीष।
आशा है कि जबलपुर लौटते ही तेरा पत्र मिलेगा। मालूम है न कि जाते ही तेरे पत्र की खोज में लग जाता हूँ।
रजनीश के प्रणाम
To--
श्री० माणिकलाल बाफना,
११८७/७, शिवाजी नगर,
(माडर्न हाई स्कूल की पीछे)
पूना-५ (महाराष्ट्र)
POONA-5 (M.S.)