प्रिय योग माया,
प्रेम। स्वतंत्रता से बहुमूल्य इस पृथ्वी पर और कुछ भी नहीं है।
उसकी गहराई में ही सन्यास है।
उसकी ऊँचाई में ही मोक्ष है।
लेकिन, सच्चे सिक्कों के साथ खोटे सिक्के भी तो चलते ही हैं।
शायद, साथ कहना भी ठीक नहीं है; क्योंकि खोटे सिक्के सच्चे सिक्कों के कारण ही चलते है !
उनके चलन का मूलाधार भी सच्चे सिक्के ही जो होते हैं !
असत्य को चलने के लिए सत्य होने का पाखंड रचना पड़ता है।
और,बेईमानी को ईमानदारी के वस्त्र ओढ़ने पड़ते हैं।
परतंत्रतायें स्वतंत्रताओं के नारों से जीती हैं।
और,कारागृह मोक्ष के चित्रों से स्वयं की सजावट कर लेते हैं !
फिरभी सदा-सदैव के लिए धोखा असंभव है।
और आदमी तो आदमी पशु भी धोखे को पहचान लेते हैं !
मैंने सुना है कि लंदन में एक अन्तर्राष्ट्रीय कुत्ता-प्रदर्शनी हुई।
उसमें आये रुसी कुत्ते ने अंग्रेज कुत्ते से पूछाः " यहां के हाल चाल कैसे हैं साथी
उत्तर मिलाः " खास अच्छे नहीं। खाने-पीने की तंगी है। और नगर पर सदा ही धुंध छाई रहती है; जो मेरा गठिये का दर्द बढ़ा देती है। हां -- मास्को में हालत कैसी है ?"
रुसी कुत्ते ने कहाः "भोजन खूब मिलाता है। चाहो जितना मांस और चाहो
जितनी हड्डियां। खाने की तो वहां बिल्कुल ही तंगी नहीं है। "
लेकिन फिर वह अगल-बगल झांककर जरा नीची आवाज में कहने लगा: यहीं राजनैतिक आश्रय चाहता हूँ। क्या तुम दया करके मेरी कुछ मदद कर सकोगे ?
अंग्रेज कुत्ता स्वाभावतः चकित होकर पूछने लगाः "मगर तुम यहां क्यों रहना चाहते हों; जबकि तुमहीं कहते हो कि मास्को में हालत बड़ी अच्छी है ?
उत्तर मिलाः "बात यह है कि मैं कभी-कभी जरा भोंक भी लेना चाहता हूँ। कुत्ता हूँ और वह भी रुसी तो क्या हुआ -- मेरी आत्मा भी स्वतंत्रता तो चाहती ही है। "