Letter written to Ma Yoga Sohan on 22 Jun 1965 in the evening. It is unknown if it has been published or not.
आचार्य रजनीश
सोहन,
प्रिय ! लौटती यात्रा सुखद हुई। सोया ही रहा। सिर्फ तेरी आज्ञायें मानने को भर बीच बीच में उठता रहा ! तू बम्बई आगई तो मैं थका नहीं। प्रेम कितना निर्भार करता है ? तू चलती गाड़ी से उतरी है, यही एक चिन्ता जरूर बनी रही कि कहीं तेरे पैर को पुनः कोई चोट तो न लग गई हो ?
शेष शुभ है। पत्र देना। माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष।