Letter written to Ma Yoga Sohan on 11 Jun 1965. It is unknown if it has been published or not.
आचार्य रजनीश
सोहन,
प्रिय ! सुबह ही है। उठकर दूब पर आ बैठा हूँ। चिडियें गीत गारही हैं। सूरज निकल रहा है, लेकिन बदलियां उसे घेरे हुये हैं। कल रात्रि से ही आकाश बदलियों से भरा है।
फिर देर तक ऐसे ही बैठा रहता हूँ। प्रकृति में डूबकर रह जाना कितना आनंद है। प्रकृति में पुरे डूबने पर जिसका अनुभव होता है, उसका नाम ही परमात्मा है।
इस भांति डूब जाने को ही मैं प्रार्थना कहता हूँ।
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माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष।
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अष्टदिवसीय सत्संग चल रहा है रहा है। बहुत लोग उसमें उत्सुक हुये हैं और बहुत ही पवित्र वातावरण निर्मित हुआ है।
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११ जून है आज और १७ जून को तू मिल रही है। रोज फासला एक दिन कम होजाता है तो बड़ी ख़ुशी होतीहै !
रजनीश के प्रणाम
११/६/१९६५
Partial translation
"Eight days’ Satsang (organized by Seth Govind Das) is going on. Many people have become interested in it and very divine ambience is created.
Today is 11th June and you are meeting on 17th June. Daily the distance is reducing - hence feeling very happy."