प्रिय मां,
सुबह आंखें खोली। अंधेरा था और खिड़की के बाहर अभी तारे थे। देर तक चुपचाप पड़ा रहा। सब शांत था : नींद टूट गई थी पर मन अभी नहीं जागा था। फिर आहिस्ता आहिस्ता मन जागने लगा : विचार तैरते हुए आने लगे। मैं देखता रहा : विचार बाहर से आते हैं। स्व जहां है – चेतना जहां है – वहां विचार पैदा नहीं होते हैं। इसे स्पष्ट देखा जा सकता है।
विचार मन में पैदा होते हैं : मन में उठते हैं और स्व के चारों ओर घूमते हैं। इससे कोई विचार हमारा नहीं है। सब विचार पर हैं, पराये हैं, परिधि पर हैं। जहां केन्द्र है वहां विचार नहीं हैं; इसलिए जो विचार में है वह केन्द्र पर नहीं पहुच पाता है।
विचार में होना केन्द्र के बाहर होना है। वही अज्ञान है। विचारों की परिधि के बाहर कूद जाना ज्ञान है। देखें; विचारों को देखें – और उनका पर होना जानलें : यह जान लेना ही उनके बाहर निकलना होजाता हे।