प्यारी शोभना,
प्रेम। तेरा पत्र पाकर अत्याधिक आनंदित हूँ।
लेकिन, कितनी प्रतीक्षा तूने कराई है?
और, एक मैं हूँ कि पत्र मिलते ही लिखने बैठ गया हूँ!
यह जानकर तो और भी आनंदित हूँ कि तुझे झगड़ना भी आता है!
लेकिन, पागल! जो सदा हारा ही हुआ है, उससे झगड़ना संभव नहीं है!
और, उसे जीतना तो असंभव ही है!
आह! सदा ही हारे हुये होने का यही तो अपरिमित लाभ है!
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मैं १५, १६, १७ मार्च पूना बोल रहा हूँ। तू वहां आ रही है न?