Talk:Jin-Sutra, Bhag 2 (जिन-सूत्र, भाग दो) (2 volume set)
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अनुक्रम
- 17: आत्मा परम आधार है
- 18: धर्म आविष्कार है स्वयं का
- 19: धर्म की मूल भित्ति: अभय
- 20: पलकन पग पोंछूं आज पिया के
- 21: जिन-शासन अर्थात आध्यात्मिक ज्यामिति
- 22: परमात्मा के मंदिर का द्वार: प्रेम
- 23: जीवन की भव्यता: अभी और यहीं
- 24: मांग नहीं--अहोभाव, अहोगीत
- 25: दर्शन, ज्ञान, चरित्र--और मोक्ष
- 26: तुम्हारी संपदा--तुम हो
- 27: साधु का सेवन: आत्मसेवन
- 28: जीवन का ऋत्: भाव, प्रेम, भक्ति
- 29: मोक्ष का द्वार: सम्यक दृष्टि
- 30: प्रेम है आत्यंतिक मुक्ति
- 31: सम्यक दर्शन के आठ अंग