Sadhana Ke Aayam (साधना के आयाम)
- बीसवीं सदी के लिए परम-पुरुष ने अगम को सुगम, कठिन को सरल और नीरस को सरस करके ज्ञान और दर्शन के जटिल कपाट अपनी व्याख्या के एक-एक पृष्ठ खोलकर स्पष्ट रूप से प्रभुसत्ता की झलक को रूपायित कर दिया है, उसकी भूमिका में मैं क्या लिखूं, और किस सामर्थय या अधिकार से लिखूं। क्योंकि उपनिषदों की चर्चा, व्याख्या, अर्थ या उनके संबंध में जो भी हो, कहने का अधिकारी वही हो सकता है, इस गहनतम ज्ञान पर वही कुछ कह-सुन सकता है जो उनके रचयिता साधकों की आंतरिक पहुंच तक किंचित मात्र पहुंच ही चुका हो। ओशो वहीं पहुंचकर बोलते हैं यानी सातवें, द्वार के झरोखे से झांककर जगत की गतिविधियों का लेखा-जोखा लेते हैं। इसीलिए लगता है कि इस उपनिषद की व्याख्या करते समय उनके श्रीमुख से स्वयं से मंत्र अपनी व्याख्या करने को उत्सुक, विहवल और आतुर होकर पुस्तक के पृष्ठों पर मुखरित हो उठे हैं
- notes
- See discussion for a TOC.
- Originally published as ch.12-17 of Kaivalya Upanishad (कैवल्य उपनिषद).
- time period of Osho's original talks/writings
- (unknown)
- number of discourses/chapters
- 6
editions
Sadhana Ke Aayam (साधना के आयाम)
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