प्यारी सोहन,
प्रेम। अभी सौराष्ट्र के प्रवास से लौट आया हूँ। लगता है कि तेरी प्रार्थनाओं के कारण मार्ग में किसी भांति की तकलीफ नहीं हुईं। प्रवास में तो तेरी अनुपस्थिति बहुत मालूम हुई ही ; लेकिन आज बम्बई स्टेशन पर आंखें तुझे बहुत खोजती रहीं। फिर किसी ने पूछा भी कि आज सोहनबाई नहीं है ? मैं ही नहीं, दूसरों को भी तेरा अभाव प्रतीत हुआ। अब कल्याण आरहा है। वहां भी उठकर तुझे देखूंगा ही। यशा ने तेरे और माणिक बाबू के प्रणाम पहुँचा दिए हैं। शेष शुभ। सबको मेरा प्रेम।