This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 9th November 1962.
The letterhead reads (in Devanagari):
Acharya Rajneesh [in a large, messy font to the right of and above the rest below]
Darshan Vibhag [Department of Philosophy]
Mahakoshal Kala Mahavidyalaya [Mahakoshal Arts University]
115, Napier Town
Jabalpur (M.P.)
Osho's salutation in this letter is a fairly typical "प्रिय मां", Priya Maan, Dear Mom. There are a couple of the hand-written marks that have been observed in other letters: a black tick mark in the upper right corner and a mirror-image number in the bottom right corner. There are actually two numbers there, one crossed out (145) and replaced by a pink number, 147.
दर्शन विभाग
महाकोशल कला महाविध्यालय
११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म. प्र.)
९/११/६२
प्रिय मां,
एक लड़की रो रही है : उसकी गुडिया टूट गई है।.... और मैं अब सोचता हूँ कि सब रोना क्या गुडियों के टूट जाने के लिए ही रोना नहीं है?
कल संध्या एक वृद्ध आये थे : उनने जीवन में जो चाहा था, वह नहीं हो सका है। वे उदास थे और संताप ग्रस्त थे। एक महिला आज मिलीं थीं और बातें करते करते आंसू पोंछ लेती थीं : उनने स्वप्न देखे थे और वे सत्य नहीं हुए हैं। और अब यह लड़की रोरही है और क्या इस लड़की की आंखों में सब आंसुओं की बुनियादी झलक नहीं है और उसके सामने टूटी पदी गुडिया में क्या सब आसुओं का मूल कारण साकार नहीं हुआ है? उसे कोई समझा रहा है कि आखिर गुड़िया ही तो है उसके लिए रोना क्या है? यह सुन मुझे हंसी आ गई है : काश! मनुष्य इतना ही जान ले तो क्या समस्त दुख समाप्त नहीं होजाता है?
गुडिया, बस गुडिया है यह जानना कितना कठिन है!
मनुष्य मुश्किल से इतना प्रोढ़ होपाता है कि यह जान सके। शरीर का प्रौढ होना एक बात है; मनुष्य का प्रोढ़ होना बिल्कुल दूसरी बात है। सम्यक् प्रोढ़ता पाने के पूर्व ही मर जाना बहुत सार्वजनिक है। प्रोढ़ता क्या है? मनुष्य की प्रोढ़ता मन से मुक्त होना है। मन जबतक है तबतक गुडियें बनाता रहता है : मन से मुक्त होते ही गुडियों से मुक्ति होती है।