Letter written to Manik Babu, husband of Ma Yoga Sohan, on 22 Feb 1966 in Jabalpur. It is unknown if it has been published or not.
(३८)
जबलपुर
२२/२/१९६६
प्रिय माणिक बाबू,
प्रेम। इधर आप खूब चिंतित हैं ; ऐसी सोहन की शिकायत आई है। उसने लिखा है तो निश्चित ही आप बहुत बोझ में होंगे तभी लिखा है। फिर आप स्वयं तो कुछ लिखते नहीं कि मैं जान सकूं ? जीवन है तो समस्यायें भी हैं और उनसे शांतिपूर्वक जूझने में जीवन का विकास भी है। लेकिन संघर्ष यदि शांतिपूर्वक न हो तो संघर्ष तो नहीं मिटता किन्तु व्यक्ति स्वयं ही टूट जाता है। इस तथ्य का ध्यान रखना सदा ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। नहीं तो अक्सर ही बाहर के लिए हम भीतर को खोदेते हैं और इससे बड़ी न कोई हानि है और न असफलता है। स्वयं की शांति और आंतरिक आनंद के समक्ष और कुछ भी अर्थपूर्ण नहीं है। उसकी स्मृति रखेंगे तो चिंतायें क्षीण होंगी और बोझ अपने आप विलीन होजावेगा। बोझ और चिंता में निरंतर दबे रहना बहुत घातक है। जबकि उन्हें अपने सिरपर से उतारकर रख देना उतना ही आसान है जैसे कि कोई यात्री ट्रेन में अपना सामान सिर से नीचे रख देता है। हां, कुछ यात्री ऐसे भी होते हैं जो कि ट्रेन में बैठकर भी अपना सामान अपने सिर पर ही रखते हैं। पर आप ऐसे यात्री क्यों बन रहे हैं ?