Chalo Re Prem Dagar Pe (चलो रे प्रेम डगर पे)
- बिना प्रेम के जीवन जीकर देख लिया। क्या मिला? अब जरा अपनी जिंदगी की धुन बदलकर देख लो। ‘चलो तुम प्रेम डगर पे’- इस पुस्तक में प्रस्तुत है- बंगाल के प्रसिद्ध बाउल फकीरों के अनूठे गीतों की बहुमूल्य व्याख्या, जो हमारी भावना को शुद्ध बनाती और चेतना को जगाती है। आध्यात्मिक साधना में, भक्ति-भाव में डूबने में अत्यंत सहयोगी हैं ये प्यारे प्रवचन। स्मरणीय है कि सदगुरु ओशो ने 1976 में अंग्रेजी में बाउल फकीरों की वाणी पर प्रवचनमाला दी। शीर्षक रखा- ‘The Beloved’। बाउलों के लिए ईश्वर बिलोवेड है, प्रेमपात्र है। प्रेम की आंख से परमात्मा का दर्शन होता है। कोई दार्शनिक सिद्धांत काम नहीं आता। लेकिन दुनिया तो प्रेम को पागलपन समझती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है, मगर तथ्य ऐसा ही है कि अंधे लोग आंख वालों को अंधा कह रहे हैं। मा ओशो प्रिया जी करीब चार वर्ष तक आस्था टेलीविजन चैनल पर बाउल संतों की अनूठी वाणी का माधुर्य बिखेरती रही हैं। प्रथम 26 व्याख्यान इस पुस्तक में संकलित हैं। सदगुरु ओशो कहते हैं- वेद और तंत्र के भी पार हैं बाउल। यह शब्द ‘बाउल’ संस्कृत के मूल ‘वातुल’ से आता है। इसका मतलब हैः पागल, हवा से प्रभावित, बावरा। बाउल न तो हिंदू और न ही मुसलमान, न ईसाई और न ही बौद्ध है। वह एक साधारण इंसान है। चर्च नहीं, मंदिर-मस्जिद नहीं; आकाश ही उसकी शरण है। एक फकीर, जिसके पास है सिर्फ इकतारा और ढोल। नृत्य उसका धर्म है, संगीत ध्यान है। गायन पूजा है, प्रेम उसकी प्रार्थना है। प्रभु रूपी प्रियतम से मिलने क्या तुम्हें भी चलना है इस प्रेम डगर पे? आओ, निमंत्रण है।
- author
- Ma Osho Priya
- language
- Hindi
- notes
editions
चलो रे प्रेम डगर पे
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