Dharm Ka Param Vigyan (धर्म का परम विज्ञान)
- जैन धर्म की गिनती यद्यपि भारत के प्रमुख धर्मों में होती है यथापि मानने वालों की संख्या उतनी नहीं है जितनी कि हिंदुओं तथा बौद्धों की है-और यह प्राचीनतम धर्म है। इसका कारण हो सकता है? ऐसा प्रतीत होता है कि महावीर को समझ्ने में उस समय तो पात्रता बहुत कम थी ही इधर पच्चीस सौ वर्षों के दौरान भी पात्रता में कोई विशेष अंतर नहीं आया। इस पुस्तक में महावीर की वाणी को ओशो की अभिव्यक्ति मिली है। इसलिए सत्य की जो अभिव्यक्ति कुछ गिने-चुने लोगों तक सीमित थी, आज वह ओशो के परम सशक्त माध्यम से जन-जन तक पहुंचने लगी है और आने वाले निकट भविष्य में यह वाणी जन-जन तक पहुंचेगी। महावीर की वाणी को ओशो ने आज के युग की भाषा दी है और लोकप्रिय बनाया है।
- notes
- Originally published as ch.1-13 of Mahaveer-Vani, Bhag 1 (महावीर-वाणी, भाग 1).
- Previously published as ch.1-13 of Mahaveer-Vani, Bhag 1 (महावीर-वाणी, भाग 1) ver 1.5.
- time period of Osho's original talks/writings
- Aug 18, 1971 to Aug 30, 1971 : timeline
- number of discourses/chapters
- 13
editions
Dharm Ka Param Vigyan (धर्म का परम विज्ञान)(महावीर-वाणी) (Mahaveer-Vani)
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Dharm Ka Param Vigyan (धर्म का परम विज्ञान)(महावीर-वाणी) (Mahaveer-Vani)
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Dharm Ka Param Vigyan (धर्म का परम विज्ञान)महावीर वाणी (Mahaveer Vani)
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