Dhyan Aur Prem (ध्यान और प्रेम): Difference between revisions
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:जब किसी दूसरे व्यक्ति के संपर्क में ध्यान घटता है, तो हम उसे प्रेम कहते हैं। और जब बिना किसी दूसरे व्यक्ति के, अकेले ही प्रेम घट जाता है, तो उसे हम ध्यान कहते हैं। ध्यान और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ध्यान और प्रेम एक ही दरवाजे का नाम है, दो अलग-अलग स्थानों से देखा गया। अगर बाहर से देखोगे, तो दरवाजा प्रेम है। अगर भीतर से देखोगे, तो दरवाजा ध्यान है। जैसे एक ही दरवाजे पर बाहर से लिखा होता है एंट्रेन्स, प्रवेश; और भीतर से लिखा होता है एग्जिट, बहिर्गमन। वह दरवाजा दोनों काम करता है। अगर बाहर से उस दरवाजे पर आप पहुँचे, तो लिखा है प्रेम। अगर भीतर से उस दरवाजे को अनुभव किया तो लिखा ध्यान। ध्यान अकेले में ही प्रेम से भर जाने का नाम है और प्रेम दूसरों के साथ ध्यान में उतर जाने की कला है। | | :जब किसी दूसरे व्यक्ति के संपर्क में ध्यान घटता है, तो हम उसे प्रेम कहते हैं। और जब बिना किसी दूसरे व्यक्ति के, अकेले ही प्रेम घट जाता है, तो उसे हम ध्यान कहते हैं। ध्यान और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ध्यान और प्रेम एक ही दरवाजे का नाम है, दो अलग-अलग स्थानों से देखा गया। अगर बाहर से देखोगे, तो दरवाजा प्रेम है। अगर भीतर से देखोगे, तो दरवाजा ध्यान है। जैसे एक ही दरवाजे पर बाहर से लिखा होता है एंट्रेन्स, प्रवेश; और भीतर से लिखा होता है एग्जिट, बहिर्गमन। वह दरवाजा दोनों काम करता है। अगर बाहर से उस दरवाजे पर आप पहुँचे, तो लिखा है प्रेम। अगर भीतर से उस दरवाजे को अनुभव किया तो लिखा ध्यान। ध्यान अकेले में ही प्रेम से भर जाने का नाम है और प्रेम दूसरों के साथ ध्यान में उतर जाने की कला है। | | ||
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Latest revision as of 17:16, 16 March 2021
- प्रेम बिलकुल अनूठी बात है, उसका बुद्धि से कोई सम्बन्ध नहीं। प्रेम का विचार से कोई संबंध नहीं। जैसा ध्यान निर्विचार है, वैसा ही प्रेम निर्विचार है। और जैसे ध्यान बुद्धि से नहीं सम्हाला जा सकता, वैसे ही प्रेम भी बुद्धि से नहीं सम्हाला जा सकता।
- ध्यान और प्रेम करीब-करीब एक ही अनुभव के दो नाम हैं।
- जब किसी दूसरे व्यक्ति के संपर्क में ध्यान घटता है, तो हम उसे प्रेम कहते हैं। और जब बिना किसी दूसरे व्यक्ति के, अकेले ही प्रेम घट जाता है, तो उसे हम ध्यान कहते हैं। ध्यान और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ध्यान और प्रेम एक ही दरवाजे का नाम है, दो अलग-अलग स्थानों से देखा गया। अगर बाहर से देखोगे, तो दरवाजा प्रेम है। अगर भीतर से देखोगे, तो दरवाजा ध्यान है। जैसे एक ही दरवाजे पर बाहर से लिखा होता है एंट्रेन्स, प्रवेश; और भीतर से लिखा होता है एग्जिट, बहिर्गमन। वह दरवाजा दोनों काम करता है। अगर बाहर से उस दरवाजे पर आप पहुँचे, तो लिखा है प्रेम। अगर भीतर से उस दरवाजे को अनुभव किया तो लिखा ध्यान। ध्यान अकेले में ही प्रेम से भर जाने का नाम है और प्रेम दूसरों के साथ ध्यान में उतर जाने की कला है।
- notes
- Originally published as ch.6-11 of Nahin Ram Bin Thanv (नहिं राम बिन ठांव).
- time period of Osho's original talks/writings
- May 30, 1974 to Jun 4, 1974 : timeline
- number of discourses/chapters
- 6 (see table of contents)
editions
Dhyan Aur Prem (ध्यान और प्रेम)
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Dhyan Aur Prem (ध्यान और प्रेम)
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table of contents
edition 2003 chapter titles |
discourses | |||||||
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event | location | duration | media | |||||
1 | राम : शून्यता की खोज | 30 May 1974 pm | Lao Tzu balcony, Poona | 1h 11min | audio | |||
2 | सीता : प्रेम की अनन्य घटना | 31 May 1974 pm | Lao Tzu balcony, Poona | 1h 9min | audio | |||
3 | एक कथा : दो अर्थ | 1 Jun 1974 pm | Lao Tzu balcony, Poona | 1h 5min | audio | |||
4 | दो पक्षी : कर्ता और साक्षी | 2 Jun 1974 pm | Lao Tzu balcony, Poona | 1h 23min | audio | |||
5 | माया मिली न राम | 3 Jun 1974 pm | Lao Tzu balcony, Poona | 1h 12min | audio | |||
6 | होटेई का झोला | 4 Jun 1974 pm | Lao Tzu balcony, Poona | 1h 15min | audio |