Krishna Meri Drishti Mein ~ 16 (transcript): Difference between revisions

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:Osho: खड़े होके कहो।  
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Revision as of 07:03, 22 December 2020

This is a transcript of the first 8 minutes of the event Krishna Meri Drishti Mein ~ 16. These questions were arranged in a few question in book version.
Osho: खड़े होके कहो।
1st Questioner: "आचार्य जी ने बताया कि श्री अरविंद को खाली कृष्ण की मूर्ति दिखाई दी थी। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि उनको मूर्ति नहीं दिखाई दी थी लेकिन उनको एक्स्पिरियन्स हुआ था 'वासुदेव इदम् सर्वम्'।
माने कि वो जैल की वॉल, विंडो के बाहर, गार्डन के ट्रीज, बर्ड्स, जैलर ओर वो जज, एडवोकेट, और ओडियन्स और खुद अपने में भी उसको कृष्ण कोन्सियसनेस का एक्स्पिरियन्स हुआ। और आगे चलके वो प्राणायाम करते थे और उनको एक योगी मिला - मि. लेले करके - उन्होंने उनको निर्वाण का एक्स्पिरियन्स भी करवा पाया था।... तभी उनको उनके पीछे पोलिटिकल..... तो वो बोलते थे कि हमें कुछ एक्स्पिरियन्स आते हैं - हम बोलेंगे कैसे?
माने कि वो उनके माइंड पीछे तो चले गए थे... प्रोजेक्शन इस में हो ही नहीं सकता। पीछे आपने कहा कि मौलिक आइडिया होता है एक व्यक्ति का तभी वो ट्रुथ होने का संभावना ज्यादा है लेकिन अरविंद ने कहा कि यह सुपरामेंटल की जो थियरी है वो अपनी उनकी ओरिजिनल आइडिया नहीं है। इनके बारे में वेद में सजेशन्स, इंडिकेशन्स है लेकिन उसी टाइम वेद के रुषि थे वे लोग ने यह आइडिया को पर्स्यू नहीं किया और श्री अरविंद को लगा कि वहां तक जा सकते हैं - मेन केन रीच धेट पोइंट।
अगर आप कहते हैं कि यह प्रयोग जो पोंडिचेरी में चल रहा है वह मिथ्या है, झूठ है, लेकिन वह जो अभी चल रहा है, खतम नहीं हुआ है तो हम कैसे जज करेंगे कि वो झूठ है? जभी वो खतम होगा - उसके रीजल्ट फ्युचर जनरेशन को दीखाई देंगे तो future generation history लिखेगी - तय करेगी कि वह सच है या झूठ है? समझे कि अगर वह फैल भी हो गया.. Failures are the pillars of the success - तो वैसे बहुत से scientists ने बहुत से प्रयोग किये और fail हो गये लेकिन उनके पीछे चलनेवाले ने उनको modify करके उसको सच्चा बना लिया, वैसे यह Superamental theory भी potent तो अभी भी है तो future में वो successful हो सकती है और श्री अरविंद को योगी का title मिला है तो indian people इतने तो कच्चे नहीं कि किसी को कोई भी title देदे। तो योगी का मतलब है कि उनको कुछ experience तो हुआ ही होगा।
और आप ने कहा कि पोंडिचेरी के लोग वहां जो इकट्ठे हुए हैं वे बहुत लोभी हैं और कुछ करना नहीं चाहते अरविंद... devine करेंगे और सबको उनका fruits मिल जाएगा लेकिन उन्होंने भी कहा है कि every साधक को तीन तरह से तो effort करना ही पड़ेगा - rejection, aspiration and surrender -... जहां इगो ही surrender हो जाएगा वहां devine मिल जाएगा - क्या कोई ऐसा तो नहीं वे झूठ बोलते थे।... जो बोलते है वह सब ने बोला है - कृष्ण ने बोला, इन्होंने बोला, लेकिन इन्होंने लिखा है। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि जब हम बोलते हैं तो कभी कभी हम words change भी कर देते हैं।
लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि जब हम बोलते हैं तो कभी कभी हम words change भी कर देते हैं - statement modify भी करते हैं लेकिन जब लिखना पड़ता है तब precise होना चाहिए और to the point लिखना चाहिए और उन्होंने जैसे वेद के ऋषियों ने बताया हैं कि उन्होंने वेद अपने आप से नहीं लिखे - हम ने सुने - कोई हम से बोलता था..... जो मैंने नहीं लिखा है - उपर से कुछ उतरता है और अपने आप लिखा जाता है।
तो हमें लगता है कि श्री अरविंद को भी कुछ experience हुए थे, खाली mental projection नहीं थे। आप अगर clarify करें तो कृपा होगी।"
2nd Questioner: "आचार्य जी, आप ने इस युग में अवतरण लेके हम लोगों को बहुत बहुत लाभ पहुंचाया है। और आज मुझे इतना कहने दीजिए कि आप के रूप में हम रजनीश जी ही नहीं पा रहे हैं लेकिन भारत की बड़ी निधी पा रहे हैं।
मैं हमारे जो aspiration हो या कामना हो - क्या भगवान को मैं प्रार्थना कर सकती हूं कि इतना ही कहूं कि ईश्वर आपकी बहुत बहुत सालों तक रक्षा करें। साथ ही लोगों को बहुत बहुत clarification मिलेगा। दूसरी चीज मैं यह कहूं कि आपके व्यंग में भी हमें बहुत गहरा meaning मिले हैं। और इसीलिए आपके आभारी तो हम हैं - प्रभुके और आपके प्रति हम ऋण प्रगट करते हैं। बहुत सालों तक आप जिंदा रहे और ऐसे ही बहुत से लोगों को चिजों की clarification दे। यह कामना यहां के लोगों की ही नहीं और लोगों की भी है।.... चाहती तो यही हूं कि आपके साथ हम मौन ही रह जाए... आपके उत्तर में भी हमको कुछ बहुत बड़ा मिल जाता है इसीलिए प्रश्न जारी रहते हैं।
जैन-इतिहास के आधार पर जैनों के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ कृष्ण के चचेरे भाई थे। घोर तपश्चर्या के बाद वे ही हिंदुओं के घोर अंगिरस ऋषि के नाम से प्रचलित हुए। और अध्यात्म ज्ञान की परंपरा - esotoric knowledge में वे कृष्ण की लिंक रहे। आपकी इस संबंध में क्या दृष्टि है? क्या ऐसा संबंध होता है? क्योंकि आपने ही कहा कि कृष्ण का होना आंतरिक कारणों पर अवलंबित था। वे आंतरिक कारण क्या थे esoteric ज्ञान के संदर्भ में?
और आपने कहा बुद्ध जयंती और लामाओं के.. होना बताया तो.. हिमालय की घाटी में... वाले..... ने एलिसबेली को telepathy से खुद ज्ञान दिया। जो उन्होंने ध्यान में उन्हीं के master से पाया।
England के psychological and para psychological circle में उहापोह हुआ और वहां पर press वालों ने उनको sub conscious projection या mind का projection ही बताया। दूसरी सारी बातें इन्कार की। एलिस कहती है मेरा कुछ भी नहीं है, यह सब मेरे master का है।
तो अरविंद का कृष्ण संबंधी mental projection और एलिस का.... master..... कृपया आपकी दृष्टि बताएं।
और एक छोटा सा प्रश्न यह... जैसा है आपकी.... बुद्धी को देखकर मुझे यह भी प्रश्न होता है कि क्या आपको भी कोई इतने बड़े master का सहारा है....."