Letter written on 10 Jan 1961: Difference between revisions

From The Sannyas Wiki
Jump to navigation Jump to search
mNo edit summary
mNo edit summary
Line 15: Line 15:




           प्रिय मां,<br>
<p style="text-indent: 50px;">प्रिय मां,<br>
           प्रभात! वृक्षों के रन्ध्रों से सूरज की किरणें मुझतक आ पहुँची है। बौरे आम सिर उठाए खड़े हैं। मंदिर की घंटियों का निनाद गूंजता जाता है।  
<p style="text-indent: 50px;">प्रभात! वृक्षों के रन्ध्रों से सूरज की किरणें मुझतक आ पहुँची है। बौरे आम सिर उठाए खड़े हैं। मंदिर की घंटियों का निनाद गूंजता जाता है।  


           मैं घूमकर लौट पड़ा हूँ।  
मैं घूमकर लौट पड़ा हूँ।  


           रात भर की सोयी राह जाग रही है।
<p style="text-indent: 50px;">रात भर की सोयी राह जाग रही है।


           बहुत बहुत आनंद है।  
<p style="text-indent: 50px;">बहुत बहुत आनंद है।  


           राह चलते राहियों के चेहरे पर उदास हैं। थके और प्रसन्नता शून्य।  
<p style="text-indent: 50px;">राह चलते राहियों के चेहरे पर उदास हैं। थके और प्रसन्नता शून्य।  


           उनकी आंखें कहीं और खोई हैं। वे जैसे अपने में नहीं है। यह बीमारी सारी दुनियां में फैल गई है। कोई अपने में नहीं है।
<p style="text-indent: 50px;">उनकी आंखें कहीं और खोई हैं। वे जैसे अपने में नहीं है। यह बीमारी सारी दुनियां में फैल गई है। कोई अपने में नहीं है।


           टी-वी-टुट-टुट। बांसों के कुँज से चिडियों का झुंड उड़ जाता है। मनुष्य को छोड़ और सारे पशु जानते हैं कि जीवन आनंद के लिए है। कोई चिडिया उदास नहीं दीखती। घास का तिनका भी रोता हुआ नहीं। मनुष्य पर एकदम रोऊ होगया है।
<p style="text-indent: 50px;">टी-वी-टुट-टुट। बांसों के कुँज से चिडियों का झुंड उड़ जाता है। मनुष्य को छोड़ और सारे पशु जानते हैं कि जीवन आनंद के लिए है। कोई चिडिया उदास नहीं दीखती। घास का तिनका भी रोता हुआ नहीं। मनुष्य पर एकदम रोऊ होगया है।


           कारण क्या है? कारण है कि मनुष्य वर्तमान में नहीं है। अतीत मृत है। भविष्य अनजान है। वर्तमान ही एकमात्र जीवन है। सत्ता बस वर्तमान की है। जो वर्तमान में नहीं है; वह जीवित भी नहीं है। मनुष्य वर्तमान को भूल गया है। एक क्षण भी वह वहां नहीं है जहां है।
<p style="text-indent: 50px;">कारण क्या है? कारण है कि मनुष्य वर्तमान में नहीं है। अतीत मृत है। भविष्य अनजान है। वर्तमान ही एकमात्र जीवन है। सत्ता बस वर्तमान की है। जो वर्तमान में नहीं है; वह जीवित भी नहीं है। मनुष्य वर्तमान को भूल गया है। एक क्षण भी वह वहां नहीं है जहां है।


इससे दुख है। यह मूल में मानसिक है। कोई राजनैतिक या आर्थिक हल मात्र इसे हल नहीं कर पायेगा। मन की क्रांति ही मार्ग है। उससे ही समाधान आसकता है। कल बोला हूँ तो यही कहा है।
इससे दुख है। यह मूल में मानसिक है। कोई राजनैतिक या आर्थिक हल मात्र इसे हल नहीं कर पायेगा। मन की क्रांति ही मार्ग है। उससे ही समाधान आसकता है। कल बोला हूँ तो यही कहा है।


          ***
<p style="text-indent: 50px;">***


           पत्र आपका कल संध्या मिला। खूब मीठा। खादी अभी रखी है। पहनूं
<p style="text-indent: 50px;">पत्र आपका कल संध्या मिला। खूब मीठा। खादी अभी रखी है। पहनूं


----
----
Line 46: Line 46:




           कैसे खराब हो जाने का डर जो है!
<p style="text-indent: 50px;">कैसे खराब हो जाने का डर जो है!


           शांता को पुत्र की उपलब्धि हुई है यह तार मिला। मेरा आशीष तो उसके कानों में डाल ही देना!
<p style="text-indent: 50px;">शांता को पुत्र की उपलब्धि हुई है यह तार मिला। मेरा आशीष तो उसके कानों में डाल ही देना!


           सबको मेरे प्रणाम। स्नेह के विवाह का आमंत्रण दद्दा दिए हैं। उस समय आना ही होगा। जरा जल्दी ताकि एक-दो दिन यहां रुकना होजावेगा और बाद में गांव चलेंगे। शेष शुभ। हां, मेरे चित्रों का क्या हुआ? यहां छोटी बहिन को जबसे ज्ञात हुआ वह राह देख रही है। शेष शुभ!
<p style="text-indent: 50px;">सबको मेरे प्रणाम। स्नेह के विवाह का आमंत्रण दद्दा दिए हैं। उस समय आना ही होगा। जरा जल्दी ताकि एक-दो दिन यहां रुकना होजावेगा और बाद में गांव चलेंगे। शेष शुभ। हां, मेरे चित्रों का क्या हुआ? यहां छोटी बहिन को जबसे ज्ञात हुआ वह राह देख रही है। शेष शुभ!</p>
 
           फड़के गुरुजी को कहें कि चुप क्यों हैं? कभी कुछ लिखें!


<p style="text-indent: 50px;">फड़के गुरुजी को कहें कि चुप क्यों हैं? कभी कुछ लिखें!</p>


<div style='text-align:right;float:left;width:40%;'>रजनीश के प्रणाम</div>
<div style='text-align:right;float:left;width:40%;'>रजनीश के प्रणाम</div>

Revision as of 01:29, 15 February 2020

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parekh. It was written on 10th January 1961 on his personal letterhead stationery of the day: The top left corner reads: Rajneesh / Darshan Vibhag (Philosophy Dept) / Mahakoshal Mahavidhalaya (Mahakoshal University). The top right reads: Nivas (Home) / Yogesh Bhavan, Napiertown / Jabalpur (M.P.). Many of his letters on this letterhead have had the number 115 added in by hand before "Yogesh Bhavan" to complete his address, but not this one.

This letter does not have any of the hand-written numbers or marks that have been described with most earlier letters except for a red tick mark in the top right. The salutation is the usual "प्रिय मां", Priya Maan, Dear Mom. Moreover, it does not fall into a previously observed pattern of a chronological order, with lower file numbers written before higher.

This letter has been published in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो), p 73-74 (2002 Diamond edition).


रजनीश
निवास:
दर्शन विभाग
योगेश भवन, नेपियर टाउन
महाकोशल महाविद्यालय
जबलपुर (म. प्र.)


प्रिय मां,

प्रभात! वृक्षों के रन्ध्रों से सूरज की किरणें मुझतक आ पहुँची है। बौरे आम सिर उठाए खड़े हैं। मंदिर की घंटियों का निनाद गूंजता जाता है। मैं घूमकर लौट पड़ा हूँ।

रात भर की सोयी राह जाग रही है।

बहुत बहुत आनंद है।

राह चलते राहियों के चेहरे पर उदास हैं। थके और प्रसन्नता शून्य।

उनकी आंखें कहीं और खोई हैं। वे जैसे अपने में नहीं है। यह बीमारी सारी दुनियां में फैल गई है। कोई अपने में नहीं है।

टी-वी-टुट-टुट। बांसों के कुँज से चिडियों का झुंड उड़ जाता है। मनुष्य को छोड़ और सारे पशु जानते हैं कि जीवन आनंद के लिए है। कोई चिडिया उदास नहीं दीखती। घास का तिनका भी रोता हुआ नहीं। मनुष्य पर एकदम रोऊ होगया है।

कारण क्या है? कारण है कि मनुष्य वर्तमान में नहीं है। अतीत मृत है। भविष्य अनजान है। वर्तमान ही एकमात्र जीवन है। सत्ता बस वर्तमान की है। जो वर्तमान में नहीं है; वह जीवित भी नहीं है। मनुष्य वर्तमान को भूल गया है। एक क्षण भी वह वहां नहीं है जहां है। इससे दुख है। यह मूल में मानसिक है। कोई राजनैतिक या आर्थिक हल मात्र इसे हल नहीं कर पायेगा। मन की क्रांति ही मार्ग है। उससे ही समाधान आसकता है। कल बोला हूँ तो यही कहा है।

***

पत्र आपका कल संध्या मिला। खूब मीठा। खादी अभी रखी है। पहनूं


रजनीश
निवास:
दर्शन विभाग
योगेश भवन, नेपियर टाउन
महाकोशल महाविद्यालय
जबलपुर (म. प्र.)


कैसे खराब हो जाने का डर जो है!

शांता को पुत्र की उपलब्धि हुई है यह तार मिला। मेरा आशीष तो उसके कानों में डाल ही देना!

सबको मेरे प्रणाम। स्नेह के विवाह का आमंत्रण दद्दा दिए हैं। उस समय आना ही होगा। जरा जल्दी ताकि एक-दो दिन यहां रुकना होजावेगा और बाद में गांव चलेंगे। शेष शुभ। हां, मेरे चित्रों का क्या हुआ? यहां छोटी बहिन को जबसे ज्ञात हुआ वह राह देख रही है। शेष शुभ!

फड़के गुरुजी को कहें कि चुप क्यों हैं? कभी कुछ लिखें!

रजनीश के प्रणाम
१० जन. १९६१


See also
(?) - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.