Letter written on 11 Feb 1962 am

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This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 11 Feb 1962 in the morning.

This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 116 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 96 (2002 Diamond edition).

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म.प्र.)

मां,
एक स्वप्न से जागा हूँ। जागते ही एक सत्य दीखा है। स्वप्न में मैं भागीदार भी था और दृष्टा भी था : स्वप्न में जब तक था : दृष्टा भूल गया था, भागीदार ही रह गया था। अब जागकर देखता हूँ कि दृष्टा ही था, भागीदार प्रक्षेप था।

स्वप्न जैसा है, संसार भी वैसा ही है। दृष्टा चैतन्य ही सत्य है, शेष सब कल्पित है। जिसे हमने ‘मैं’ जाना है, वह वास्तविक नहीं है। उसे भी जो जान रहा है, वास्तविक वही है।

यह सबका दृष्टा तत्व सबसे मुक्त और सबसे अतीत है। उसने न कभी कुछ किया है, न कभी कुछ हुआ है। वह बस है।

असत्य ‘मैं’, स्वप्न ‘मैं’ शांत होजावे, तो जो ‘है’ वह प्रगट होजाता है। इस ‘है’ को हो जाने देना मोक्ष है, कैवल्य है।

प्रभात:
११ फर. १९६२

रजनीश के प्रणाम


(पुनश्च: कल संध्या पत्र मिल गया है। बुलढ़ाना के संबंध में सोचेंगे। टेप रिकाडिंग पारख जी लेआए यह अच्छा है। अमृत से वायु-विकार में अंतर पड़ रहाहै। सबको मेरे विनम्र प्रणाम।)


See also
Krantibeej ~ 116 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.