Letter written on 11 Jun 1970: Difference between revisions

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Letter written to [[Ma Prema Nivedita]] on 11 Jun 1970. It is unknown if it published or not.
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acharya rajneesh
kamala nehru nagar : jabalpur (m.p.). phone : 2957
प्यारी जया,<br>
प्रेम। ध्यान की पहली सीढ़ी पर तू खड़ी हो गई है।
साहस, संकल्प और श्रम कभी असफल नहीं होता है।
तेरी कठिनाइयों का मुझे घ्यान है ; लेकिन तू उनसे जूझी और हारी नहीं ; इससे मैं बहुत आनंदीत हूँ।
खुदाई शुरू हो गई है उस कुँये की जिसके अंतिम चरण में सच्चिदानंद की उपलब्धि होती है।
लेकिन, अब रुकना नहीं।
जिसे प्रारंभ किया है, उसे पूरा भी करना।
कुँआ खोदते हैं तो पहले तो कंकड - पत्थर ही निकलते हैं।
बिच में चट्टानें भी आती हैं।
जलस्त्रोत तो अंततः ही प्राप्त होते हैं।
ऐसा ही ध्यान में भी होता है।
कंकड - पत्थरों के निकलते ही तू भागने को होगई थी।
मैं बड़ी मुश्किल से ही तुझे रोक पाया।
लेकिन, अब डर नहीं है।
क्योंकि, आनंद की झलक जो तुझे मिल गई है।
अब तो वह झलक ही खींचेगी।
और गहरे, और गहरे।
और आगे, और आगे।
उस क्षण जबतक कि अतल गहराई नहीं मिल जाती है।
रजनीश के प्रणाम
११/६/१९७०
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Letter written to [[Ma Prema Nivedita]] on 11 Jun 1970. It is unknown if it published or not. We are awaiting a transcription and translation.




;See also
;See also
:[[Letters to Ma Prema Nivedita ~ 03]] - The event of this letter.
:[[Letters to Ma Prema Nivedita ~ 03]] - The event of this letter.

Revision as of 06:56, 17 March 2020

Letter written to Ma Prema Nivedita on 11 Jun 1970. It is unknown if it published or not.

acharya rajneesh

kamala nehru nagar : jabalpur (m.p.). phone : 2957

प्यारी जया,
प्रेम। ध्यान की पहली सीढ़ी पर तू खड़ी हो गई है।

साहस, संकल्प और श्रम कभी असफल नहीं होता है।

तेरी कठिनाइयों का मुझे घ्यान है ; लेकिन तू उनसे जूझी और हारी नहीं ; इससे मैं बहुत आनंदीत हूँ।

खुदाई शुरू हो गई है उस कुँये की जिसके अंतिम चरण में सच्चिदानंद की उपलब्धि होती है।

लेकिन, अब रुकना नहीं।

जिसे प्रारंभ किया है, उसे पूरा भी करना।

कुँआ खोदते हैं तो पहले तो कंकड - पत्थर ही निकलते हैं। बिच में चट्टानें भी आती हैं।

जलस्त्रोत तो अंततः ही प्राप्त होते हैं।

ऐसा ही ध्यान में भी होता है।

कंकड - पत्थरों के निकलते ही तू भागने को होगई थी।

मैं बड़ी मुश्किल से ही तुझे रोक पाया।

लेकिन, अब डर नहीं है।

क्योंकि, आनंद की झलक जो तुझे मिल गई है।

अब तो वह झलक ही खींचेगी।

और गहरे, और गहरे।

और आगे, और आगे।

उस क्षण जबतक कि अतल गहराई नहीं मिल जाती है।

रजनीश के प्रणाम

११/६/१९७०


See also
Letters to Ma Prema Nivedita ~ 03 - The event of this letter.