Letter written on 12 Jun 1965 om
Revision as of 14:50, 24 May 2022 by Dhyanantar (talk | contribs)
Letter written to Ma Yoga Sohan on 12 Jun 1965 in the afternoon. It has been published in Ghoonghat Ke Pat Khol (घूंघट के पट खोल) as letter 12.
आचार्य रजनीश प्रेम ! जोर की हवायें बह रही है। बदलियां उड़ी जाती हैं और छिपा सूरज बाहर प्रिय सोहन, निकल आया है। अभी अभी आकाश कैसा ढंका था ? ऐसा ही मनुष्य - मन है। साधना की हवायें उसकी सारी धूल को उड़ा लेजाती हैं और दर्पण स्वच्छ होजाता है। दर्पण मिटता तो है नहीं, बस ढंक जाता है। मन के दर्पण की धूल से भरे होने की बात तूने लिखी है। वह धूल हट जावेगी। धूल कोई शक्ति नहीं है। एक बार उसे हटाने का स्मरण भर आजाने की बात है।
माणिक बाबू को मेरा स्मरण दिलाना और बच्चों को भी। रजनीश के प्रणाम दोपहरः १२ जून १९६५ |
- See also
- Ghoonghat Ke Pat Khol ~ 012 - The event of this letter.
- Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.