Letter written on 12 Mar 1965

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Letter written to Ma Yoga Sohan on 12 Mar 1965 from Circuit house, Tikamgarh. It has been published in Prem Ke Phool (प्रेम के फूल) as letter #1.

सरकिट हाउस,
टीकमगढ़ : १२/३/१९६५

प्रिय सोहन,
प्रेम। तेरा पत्र मिला। कविता से तो ह्रदय फूल गया। सुना था प्रेम से काव्य का जन्म होता हैं,तेरे पत्र में उसे साकार देख लिया !प्रेम होतो धीरे धीरे पूरा जीवन ही काव्य होजाता है। जीवन-सौंदर्य के फूल प्रेम की धूप में ही खिलते हैं।

यह भी तूने खूब पूछा है कि मेरे ह्रदय में तेरे लिए इतना प्रेम क्यों है ? क्या प्रेम के लिए भी कोई कारण होते हैं ? और यदि किसी कारण से प्रेम हो तो क्या हम उसे प्रेम कहेंगे ?

पागल ,प्रेम तो सदा ही अकारण होता है। यही उसका रहस्य और उसकी पवित्रता है। अकारण होने कारण ही प्रेम दिव्य है और प्रभु के लोक का है।

फिर, मैं तो उसी भांति प्रेम से भरा हूँ, जैसे दीपक में प्रकाश होता है। पर उस प्रकाश के अनुभव के लिए आंखें चाहिए। तेरे पास आंखें थी तो तूने उस प्रकाश को पहचाना। इसमें मेरी नहीं, तेरी ही विशेषता है।

वहां सबको मेरे प्रणाम कहना। मैं आज दोपहर ही यहां पहुँचा हूँ और रात्रि और कल सुबह बोलकर वापिस लौटूँगा। माणिक बाबू और बच्चों को प्रेम।

रजनीश के प्रणाम

See also
Prem Ke Phool ~ 001 - The event of this letter.
Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.