Letter written on 17 Jun 1962: Difference between revisions

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This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 17 June 1962.
 
This letter has been published in ''[[Krantibeej (क्रांतिबीज)]]'' as letter 60 (edited and trimmed text; a few paragraphs were inserted from unknown source<!--tagAntarToDo-->) and later in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 137 (2002 Diamond edition).
 
In PS Osho writes: "Ma, the transformation that I was awaiting for, is happening in Kranti. I was expecting to see him calm - that desire is now getting fulfilled. He has written one letter to you - which I am sending with this letter. Your letter has been received. I am OK, now - there was no specific matter in regard to health - just a feeling of simply being unwell, in general."
 
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रजनीश
 
११५, नेपियर टाउन<br>
जबलपुर (म.प्र.)
 
१७ जून १९६२
 
प्यारी मां,<br>
पूर्णिमा है लेकिन आकाश बादलों से ढंका है। पानी की थोड़ी सी फुहारें आई हैं और मौसम बहुता सुहावना और सोंदा होगया है।
 
मैं राह से आया हूँ। राह के किनारे रेत के एक ढ़ेर पर कुछ बच्चे खेल रहे थे। उन्होंने रेत के घर बनाए थे और फिर उन पर से ही उनके बीच में झगड़ा होगया था। यह झगड़ा थोड़ी ही देर में बड़ों तक पहुँच गया था और जो विषाक्त बातें एक दूसरे पर फेंकी गई वह सुनकर बड़ी हैरानी होती है।
 
मैं तो आश्चर्य से भर जाता हूँ : यह सारे लोग मनुष्य हैं कि क्या हैं?
 
जिब्रान की एक कहानी याद आती है : उसने लिखा है : “एक दिन मैंने खेत में खड़े एक काठ के पुतले से कहा : ‘क्या तुम इस खेत में खडे खडे उकता नहीं जाते हो?’ उसने उत्तर दिया : ‘पक्षियों को डराने का आनंद इतना अधिक है कि मैं इस व्यर्थ के जीवन से कभी नहीं उकताता हूँ।’
:“मैंने क्षण भर सोचकर कहा : ‘यह सत्य है क्योंकि मुझे भी इस आनंद का अनुभव है।’
:वह पुतला बोला : ‘हां, वही व्यक्ति जिनके शरीर में घास-फूस भरा है, इस आनंद से परिचित होसकते हैं!’ “
 
इस आनंद से तो सभी परिचित मालुम हाते हैं! उस रेत के ढ़ेर पर यही आनंद देखकर आरहा हू!
 
मनुष्य जबतक जागता नहीं है तबतक वह घास-फूस से भरे पुतले से ज्यादा नहीं है। जार्ज गुरजिएफ ने एक बात कही है कि इस भ्रम को छोड़ दो कि प्रत्येक के पास आत्मा है! जो सोया है उसके पास आत्मा है या नहीं, इससे सच ही कोई अंतर पड़ता है।
 
रजनीश के प्रणाम
 


This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 17 June 1962.
पुनश्च: मां, मैं जिसकी प्रतिक्षा में था वह परिवर्तन क्रांति में घटित हो रहा है। उसे शांत देखना चाहता था, वह कामना पूरी हो रही है। उसने एक पत्र आपको लिखा है वह इस पत्र के साथ भेज रहा हूँ। आपका पत्र मिल गया है। मैं अब ठीक हूँ। स्वास्थ्य में विशेष बात नहीं थी : केवल सामान्यत: कुछ अस्वस्थ सा मालुम होरहा था। वह अब ठीक हो गया है।


This letter has been published, in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 137 (2002 Diamond edition). We are awaiting a transcription and translation.
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;See also
;See also
:(?) - The event of this letter.
:[[Krantibeej ~ 060]] - The event of this letter.
:[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters.
:[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters.

Revision as of 04:55, 11 March 2020

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 17 June 1962.

This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 60 (edited and trimmed text; a few paragraphs were inserted from unknown source) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 137 (2002 Diamond edition).

In PS Osho writes: "Ma, the transformation that I was awaiting for, is happening in Kranti. I was expecting to see him calm - that desire is now getting fulfilled. He has written one letter to you - which I am sending with this letter. Your letter has been received. I am OK, now - there was no specific matter in regard to health - just a feeling of simply being unwell, in general."

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म.प्र.)

१७ जून १९६२

प्यारी मां,
पूर्णिमा है लेकिन आकाश बादलों से ढंका है। पानी की थोड़ी सी फुहारें आई हैं और मौसम बहुता सुहावना और सोंदा होगया है।

मैं राह से आया हूँ। राह के किनारे रेत के एक ढ़ेर पर कुछ बच्चे खेल रहे थे। उन्होंने रेत के घर बनाए थे और फिर उन पर से ही उनके बीच में झगड़ा होगया था। यह झगड़ा थोड़ी ही देर में बड़ों तक पहुँच गया था और जो विषाक्त बातें एक दूसरे पर फेंकी गई वह सुनकर बड़ी हैरानी होती है।

मैं तो आश्चर्य से भर जाता हूँ : यह सारे लोग मनुष्य हैं कि क्या हैं?

जिब्रान की एक कहानी याद आती है : उसने लिखा है : “एक दिन मैंने खेत में खड़े एक काठ के पुतले से कहा : ‘क्या तुम इस खेत में खडे खडे उकता नहीं जाते हो?’ उसने उत्तर दिया : ‘पक्षियों को डराने का आनंद इतना अधिक है कि मैं इस व्यर्थ के जीवन से कभी नहीं उकताता हूँ।’

“मैंने क्षण भर सोचकर कहा : ‘यह सत्य है क्योंकि मुझे भी इस आनंद का अनुभव है।’
वह पुतला बोला : ‘हां, वही व्यक्ति जिनके शरीर में घास-फूस भरा है, इस आनंद से परिचित होसकते हैं!’ “

इस आनंद से तो सभी परिचित मालुम हाते हैं! उस रेत के ढ़ेर पर यही आनंद देखकर आरहा हू!

मनुष्य जबतक जागता नहीं है तबतक वह घास-फूस से भरे पुतले से ज्यादा नहीं है। जार्ज गुरजिएफ ने एक बात कही है कि इस भ्रम को छोड़ दो कि प्रत्येक के पास आत्मा है! जो सोया है उसके पास आत्मा है या नहीं, इससे सच ही कोई अंतर पड़ता है।

रजनीश के प्रणाम


पुनश्च: मां, मैं जिसकी प्रतिक्षा में था वह परिवर्तन क्रांति में घटित हो रहा है। उसे शांत देखना चाहता था, वह कामना पूरी हो रही है। उसने एक पत्र आपको लिखा है वह इस पत्र के साथ भेज रहा हूँ। आपका पत्र मिल गया है। मैं अब ठीक हूँ। स्वास्थ्य में विशेष बात नहीं थी : केवल सामान्यत: कुछ अस्वस्थ सा मालुम होरहा था। वह अब ठीक हो गया है।


See also
Krantibeej ~ 060 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.