Letter written on 18 Feb 1971
Letter written to Sw Krishna Saraswati on 18 Feb 1971. It is unknown if it has been published or not.
acharya rajneesh A-1 WOODLAND PEDDAR ROAD BOMBAY-26. PHONE: 382184 प्रिय कृष्ण सरस्वती, और अवसर : बेबूझ। जो कहा जाता है, वही नहीं -- अन्ततोगत्वा उसके परिणाम भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। कृष्णमूर्ति का ध्यान आधे सत्य पर ही है -- जो कहा जाता है उसपर ही। इसलिए जो वे कहते हैं, वह ठीक है लेकिन परिणाम अक्सर ही अनुकूल नहीं होते हैं। क्योंकि, जिससे कहा जाता है, उसका--उसकी स्थिति का -- उसकी व्याख्या का बिल्कुल ही ध्यान नहीं रखा जाता है। और मेहेर बाबा जो कहते हैं, वह ठीक नहीं है लेकिन उसके परिणाम अक्सर ही अनुकूल आते हैं। क्योंकि, जिससे कहा जाता है, उसको ही केन्द्र में रखकर कहा जाता है। निश्चय ही मेरी कठिनाई दोनों से गहरी है; क्योंकि मैं दोनों ही भांति बोलता और जीता हूँ। इसलिए मेरे वक्तव्य साधारणतः असंगत हैं (Inconsistent )ही होते हैं। और यह मैं भलीभांति जानता हूँ। वस्तुतः तो वे जान-बूझकर ही असंगत है। संगत (Consistent) होने का लोभ मैंने नहीं रखा है। पूछोगे : कारण ? कारण हैः बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय। कभी मैं सत्य ही बोलता हूँ -- निर्वस्त्र, नग्न -- जैसा है, वैसा ही। जिससे बोलता हूँ -- उसको ही ध्यान में रखकर। कभी मैं उसके ठीक विपरीत वह भी बोलता हूँ जैसा कि नहीं है -- लेकिन जिसके व्दारा परिणाम में सत्य और शुभ फलित होसकता है। लेकिन, वह भी जिससे बोलता हूँ -- उसको ही ध्यान में रखकर। एक कहानी तुमसे कहूँ : किसी सूफी फकीर के पास एक आदमी गया और बोलाः ' मेरी पत्नी बांझ है -- आप कुछ चिकित्सा करे।' वह फकीर प्रसिद्ध चिकित्सक भी था। फकीर ने स्त्री को देखा और कहाः " क्षमा करें क्योंकि मैं चिकित्सा नहीं कर सकूंगा क्योंकि यह स्त्री किसी भी स्थिति चालीस दिन के भीतर मर जायेगी। निश्चय ही वह स्त्री खाट से लग गई और मृत्यु के दुख में उसने खाना-पीना छोड़ दिया। लेकिन, चालीस दिन बीत गये और वह नहीं मरी। ख़ुशी में पति ने जाकर फकीर को कहा कि आपकी दुर्भाग्यपूर्ण भविष्यवाणी व्यर्थ गई है। फकीर ने कहाः" वह मैं जानता हूँ लेकिन अब वह बांझ नहीं रहेगी -- यह भविष्यवाणी मेरी चिकित्सा थी!" पति ने चकित हो पूछाः "चिकित्सा ? यह कैसी चिकित्सा है ?" फकीर ने कहाः "ज्ञान की गति सूक्ष्म है। तुम्हारे पत्नी का मोटापा ही उसके बांझ होने का कारण था। और मृत्यु के भय के अतिरिक्त उसे भोजन से रोकने का और कोई उपाय न था। इसलिए, अब वह स्वस्थ है और बांझपन से मुक्त। " निश्चय ही ज्ञान की गति सूक्ष्म है। और उसके मार्ग अनूठे हैं। रजनीश के प्रणाम १८/२/१९७१
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- See also
- Letters to Sw Krishna Saraswati ~ 01 - The event of this letter.