Letter written on 22 Feb 1966 (Manik): Difference between revisions

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Letter written to [[Sw Yoga Manik|Manik Babu]], husband of [[Ma Yoga Sohan]], on 22 Feb 1966 in Jabalpur. It is unknown if it has been published or not.


Letter written to [[Sw Yoga Manik|Manik Babu]], husband of [[Ma Yoga Sohan]], on 22 Feb 1966. It is unknown if it has been published or not. We are awaiting a transcription and translation.
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जबलपुर<br>
२२/२/१९६६
 
प्रिय माणिक बाबू,<br>
प्रेम। इधर आप खूब चिंतित हैं ; ऐसी सोहन की शिकायत आई है। उसने लिखा है तो निश्चित ही आप बहुत बोझ में होंगे तभी लिखा है। फिर आप स्वयं तो कुछ लिखते नहीं कि मैं जान सकूं ? जीवन है तो समस्यायें भी हैं और उनसे शांतिपूर्वक जूझने में जीवन का विकास भी है। लेकिन संघर्ष यदि शांतिपूर्वक न हो तो संघर्ष तो नहीं मिटता किन्तु व्यक्ति स्वयं ही टूट जाता है। इस तथ्य का ध्यान रखना सदा ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। नहीं तो अक्सर ही बाहर के लिए हम भीतर को खोदेते हैं और इससे बड़ी न कोई हानि है और न असफलता है। स्वयं की शांति और आंतरिक आनंद के समक्ष और कुछ भी अर्थपूर्ण नहीं है। उसकी स्मृति रखेंगे तो चिंतायें क्षीण होंगी और बोझ अपने आप विलीन होजावेगा। बोझ और चिंता में निरंतर दबे रहना बहुत घातक है। जबकि उन्हें अपने सिरपर से उतारकर रख देना उतना ही आसान है जैसे कि कोई यात्री ट्रेन में अपना सामान सिर से नीचे रख देता है। हां, कुछ यात्री ऐसे भी होते हैं जो कि ट्रेन में बैठकर भी अपना सामान अपने सिर पर ही रखते हैं। पर आप ऐसे यात्री क्यों बन रहे हैं ?
 
रजनीश के प्रणाम
 
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;See also
;See also
:[[Letters to Sw Yoga Manik ~ 09]] - The event of this letter.
:[[Letters to Manik ~ 06]] - The event of this letter.
:[[Letters to Sohan and Manik]] - Overview page of these letters.
 
[[Category:Manuscripts|Letter 1966-02-22]] [[Category:Manuscript Letters (hi:पांडुलिपि पत्र)|Letter 1966-02-22]]
[[Category:Unpublished Hindi (hi:अप्रकाशित हिंदी)|Letter 1966-02-22]]
[[Category:Newly discovered since 1990|Letter 1966-02-22]]

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Letter written to Manik Babu, husband of Ma Yoga Sohan, on 22 Feb 1966 in Jabalpur. It is unknown if it has been published or not.

(३८)

जबलपुर
२२/२/१९६६

प्रिय माणिक बाबू,
प्रेम। इधर आप खूब चिंतित हैं ; ऐसी सोहन की शिकायत आई है। उसने लिखा है तो निश्चित ही आप बहुत बोझ में होंगे तभी लिखा है। फिर आप स्वयं तो कुछ लिखते नहीं कि मैं जान सकूं ? जीवन है तो समस्यायें भी हैं और उनसे शांतिपूर्वक जूझने में जीवन का विकास भी है। लेकिन संघर्ष यदि शांतिपूर्वक न हो तो संघर्ष तो नहीं मिटता किन्तु व्यक्ति स्वयं ही टूट जाता है। इस तथ्य का ध्यान रखना सदा ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। नहीं तो अक्सर ही बाहर के लिए हम भीतर को खोदेते हैं और इससे बड़ी न कोई हानि है और न असफलता है। स्वयं की शांति और आंतरिक आनंद के समक्ष और कुछ भी अर्थपूर्ण नहीं है। उसकी स्मृति रखेंगे तो चिंतायें क्षीण होंगी और बोझ अपने आप विलीन होजावेगा। बोझ और चिंता में निरंतर दबे रहना बहुत घातक है। जबकि उन्हें अपने सिरपर से उतारकर रख देना उतना ही आसान है जैसे कि कोई यात्री ट्रेन में अपना सामान सिर से नीचे रख देता है। हां, कुछ यात्री ऐसे भी होते हैं जो कि ट्रेन में बैठकर भी अपना सामान अपने सिर पर ही रखते हैं। पर आप ऐसे यात्री क्यों बन रहे हैं ?

रजनीश के प्रणाम


See also
Letters to Manik ~ 06 - The event of this letter.
Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.