Letter written on 23 May 1962 am: Difference between revisions

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This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 23 May 1962 in morning in Gadarwara.


This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parekh. It was written on 23 May 1962 in morning in Gadarwara.
This letter has been published in ''[[Krantibeej (क्रांतिबीज)]]'' as letter 87 (edited and trimmed text) and later in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 126-127 (2002 Diamond edition).


This letter has been published, in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 126-127 (2002 Diamond edition). We are awaiting a transcription and translation.
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रजनीश


And see also [[Letters to Anandmayee]]
११५, नेपियर टाउन<br>
जबलपुर (म.प्र.)
 
गाडरवारा<br>
प्रभात: २३ मई १९६२
 
प्रिय मां,<br>
कल रात्रि नगर से दूर एक अमराई में बैठे थे। थोड़ी सी बदलियां थीं और उनके बीच चांद निकलता छिपता रहा था। प्रकाश और छाया की इस लीला में कुछ लोग देर तक मौन मेरे पास थे। कभी कभी बोलना कितना कठिन हो जाताहै। वातावरण में जब एक संगीत घेरे होता है तब डर लगता है कि कहीं बोलने से वह टूट न जाय! ऐसा ही कल रात हुआ। बहुत रात गये घर लौटे। राह में कोई कह रहा था कि ‘जीवन में मौन का अनुभव पहली बार हुआ है। यह सुना था कि मौन अद्‌भुत आनंद है पर जाना इसे आज है। पर आज तो यह अनायास हुआ है फिर दुबारा यह कैसे होगा?’
 
मैंने कहा : “जो अनायास हुआ है, वह अनायास ही होता है। प्रयास से वह नहीं आता है। प्रयास स्वयं अशांति है। प्रयास का अर्थ है कि जो है, उससे कुछ भिन्न चाहा जा रहा है। यह स्थिति तनाव की है। तनाव से तनाव ही पैदा होता है : अशांति में किया गया कुछ भी अशांति ही लाता है। अशांति शांति में नहीं बदलती है। शांति चेतना की एक भिन्न ही स्थिति है। जब अशांति नहीं होती है, तब उसका होना होता है। कुछ न करें, कोई प्रयास न करें – सब करना छोड़ दें और केवल देखते रह जायें और फिर पाया जाता है कि एक नयी चेतना, एक नया प्रकाश आहिस्ता-आहिस्ता उतरता चला आ रहा है। इस नये लोक में जो पाया जाता है वही वस्तुतः है। जो है, उसका उद्‌घाटन आनंद है, उसका उद्‌घाटन मुक्ति है। यह विराट हमारे क्षुद्र प्रयासों से नहीं – हमारे ‘मैं’ से नहीं, वरन्‌ जब प्रयास नहीं होते, जब ‘मैं’ नहीं होता, तब आता है।“
 
“संसार में जो भी पाया जाता है, वह क्रिया से, कर्म से पाया जाता है। प्रयास वहां साधन है। ‘मैं’ वहां केन्द्र है। प्रत्येक प्राप्ति इसलिए ‘मैं’ को और मजबूत कर जाती है। वस्तुतः, पाने में ‘मैं’ को मजबूत करने और फैलाने का ही सुख है। पर यह ‘मैं’ कभी पूरा नहीं भरता है। यह स्वभाव से दुष्पूर है इसलिए सुख प्रतीत ही होता है कभी उसे पाया नहीं जाता है। इससे जिन्होंने जाना, उन्होंने कहा कि संसार दुख है। संसार में हम जो करते हैं वहीं हम मुक्ति के लिये भी करने लगते हैं। उसे भी पाने में लग जाते हैं और यहीं भूल होजाती है। उसे पाना नहीं है वरन्‌ अपने को खोना है। अपने को खोते ही उसे पालिया जाता है।“
 
रजनीश के प्रणाम
 
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;See also
:[[Krantibeej ~ 087]] - The event of this letter.
:[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters.
 
[[Category:Manuscripts|Letter 1962-05-23-am]] [[Category:Manuscript Letters (hi:पांडुलिपि पत्र)|Letter 1962-05-23-am]]

Latest revision as of 03:37, 25 May 2022

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 23 May 1962 in morning in Gadarwara.

This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 87 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 126-127 (2002 Diamond edition).

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म.प्र.)

गाडरवारा
प्रभात: २३ मई १९६२

प्रिय मां,
कल रात्रि नगर से दूर एक अमराई में बैठे थे। थोड़ी सी बदलियां थीं और उनके बीच चांद निकलता छिपता रहा था। प्रकाश और छाया की इस लीला में कुछ लोग देर तक मौन मेरे पास थे। कभी कभी बोलना कितना कठिन हो जाताहै। वातावरण में जब एक संगीत घेरे होता है तब डर लगता है कि कहीं बोलने से वह टूट न जाय! ऐसा ही कल रात हुआ। बहुत रात गये घर लौटे। राह में कोई कह रहा था कि ‘जीवन में मौन का अनुभव पहली बार हुआ है। यह सुना था कि मौन अद्‌भुत आनंद है पर जाना इसे आज है। पर आज तो यह अनायास हुआ है फिर दुबारा यह कैसे होगा?’

मैंने कहा : “जो अनायास हुआ है, वह अनायास ही होता है। प्रयास से वह नहीं आता है। प्रयास स्वयं अशांति है। प्रयास का अर्थ है कि जो है, उससे कुछ भिन्न चाहा जा रहा है। यह स्थिति तनाव की है। तनाव से तनाव ही पैदा होता है : अशांति में किया गया कुछ भी अशांति ही लाता है। अशांति शांति में नहीं बदलती है। शांति चेतना की एक भिन्न ही स्थिति है। जब अशांति नहीं होती है, तब उसका होना होता है। कुछ न करें, कोई प्रयास न करें – सब करना छोड़ दें और केवल देखते रह जायें और फिर पाया जाता है कि एक नयी चेतना, एक नया प्रकाश आहिस्ता-आहिस्ता उतरता चला आ रहा है। इस नये लोक में जो पाया जाता है वही वस्तुतः है। जो है, उसका उद्‌घाटन आनंद है, उसका उद्‌घाटन मुक्ति है। यह विराट हमारे क्षुद्र प्रयासों से नहीं – हमारे ‘मैं’ से नहीं, वरन्‌ जब प्रयास नहीं होते, जब ‘मैं’ नहीं होता, तब आता है।“

“संसार में जो भी पाया जाता है, वह क्रिया से, कर्म से पाया जाता है। प्रयास वहां साधन है। ‘मैं’ वहां केन्द्र है। प्रत्येक प्राप्ति इसलिए ‘मैं’ को और मजबूत कर जाती है। वस्तुतः, पाने में ‘मैं’ को मजबूत करने और फैलाने का ही सुख है। पर यह ‘मैं’ कभी पूरा नहीं भरता है। यह स्वभाव से दुष्पूर है इसलिए सुख प्रतीत ही होता है कभी उसे पाया नहीं जाता है। इससे जिन्होंने जाना, उन्होंने कहा कि संसार दुख है। संसार में हम जो करते हैं वहीं हम मुक्ति के लिये भी करने लगते हैं। उसे भी पाने में लग जाते हैं और यहीं भूल होजाती है। उसे पाना नहीं है वरन्‌ अपने को खोना है। अपने को खोते ही उसे पालिया जाता है।“

रजनीश के प्रणाम


See also
Krantibeej ~ 087 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.