Letter written on 23 Nov 1964: Difference between revisions

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आचार्य रजनीश
आचार्य रजनीश

Revision as of 06:39, 9 April 2020

Letter written to Ma Yoga Sohan on 23 Nov 1964. It has been published in Prem Ke Phool (प्रेम के फूल) as letter #118.

आचार्य रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपूर, (म. प्र.)

प्रिय सोहन बाई,
प्प्रेम. तुम्हारा पत्र मिला है. जो शांति मुझ में है, उसे चाहा है. किसी भी क्षण वह तुम्हारी ही है. वह हम सब की अंतर्निहित सम्भावना है. केवल उसे खोदना और उघाड़ना है. जैसे, मिट् टी की परतों में जलस्रोत दबे रहते हैं, ऐसे ही हमारे भीतर आनंद का राज्य छिपा हुआ है. वह सम्भावना तो सबकी है, पर जो उसे खोदते हैं, मालिक केवल वे ही उसके होपाते हैं.

धर्म अंतस् में छिपे उस खजाने की खुदाई का उपाय है. वह स्वयं में प्रकाश का कुआ खोदने की कुदाली है.

वह कुदाली तो मैं तुम्हें बताया हूं. अब खोदना तुम्हें है. मैं जान रहा हूं कि तुम्हारे चित्त की भूमि विल्कुल तैयार है, और बहुत अल्प श्रम से अनंत जलस्रोत को पाया जासकता है. चित्त की ऐसी स्थिति बहुत सौभाग्य से मिलती है. इस सौभग्य, और इस अवसर को पूरा उपयोग करना है,ऐसे संकल्प से अपने को भरों, और शेष प्रभु पर छोड़ दो.

सत्य सदा संकल्प के साथ है.

.रजनीश के प्रणाम.

२३.११.१९६४

पुनश्च: पत्र लिखने में संकोच कभी मत करना. मेरे पास तुम्हारे लिये बहुत समय है. मैं उनके लिये ही हूं , जिनको मेरी जरुरत है. मेरे जीवन में मेरे लिये अब कुछ भी नहीं है. श्री.माणिकलाल जी को मेरा प्रेम.


See also
Prem Ke Phool ~ 118 - The event of this letter.
Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.