Letter written on 24 Jun 1962 am: Difference between revisions

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This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 24 Jun 1962 in the morning.


This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parekh. It was written on 24 Jun 1962 in the morning.
This letter has been published in ''[[Krantibeej (क्रांतिबीज)]]'' as letter 94 (edited and trimmed text) and later in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 140 (2002 Diamond edition).


This letter has been published, in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 140 (2002 Diamond edition). We are awaiting a transcription and translation.
In PS Osho writes: "This letter might not be received before leaving for Bhopal. If received, then be informed that I am awaiting."


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And see also [[Letters to Anandmayee]]
रजनीश
 
११५, नेपियर टाउन<br>
जबलपुर (म.प्र.)
 
प्रिय मां,<br>
एक बर्ष हुआ। बीती बरसात में गुलतेवरी के फूल बोये थे। बरसा गई थी तो साथ ही फूल भी चले गये थे ; फिर उनके सूखे पौधों को अलग कर दिया था। इस बार देखता हूँ कि बरसा आई है तो गुलतेवरी के कल्ले फिर अपने आप ही फूट रहे हैं। जगह जगह भूमि को तोड़कर उनने झांकना शुरू किया है। एक बर्ष तक, विगत बर्ष छूटे बीजों ने प्रतीक्षा की है और अब उनको पुनः जन्म पाते देखना आनंदपूर्ण है। भूमि के अंधेरे में सर्दी और गर्मी वे प्रतीक्षा करते रहे हैं और अब कहीं जाकर उन्हें पुनः प्रकाश पाने का अवसर मिला है। इस उपलब्धि पर उन नवजात पौधों में मंगल संगीत छाया हुआ है। उसे मैं अनुभव करता हूँ।
 
सदियों पूर्व किसी अमृत कंठ ने गया था : ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय।’ अंधेरे से प्रकाश पाने की यह आकांक्षा किसमें नहीं है? क्या मनुष्य में – क्या प्रत्येक प्राणी में ऐसे बीज नहीं छिपे हैं जो प्रकाश पाना चाहते हैं? क्या वहां भी जन्मों जन्मों से अवसर की प्रतीक्षा और प्रार्थना नहीं है?
 
प्रत्येक के भीतर छिपे हैं ये बीज और इन बीजों से ही पूर्ण होने की प्यास उठती है। प्रत्येक के भीतर छिपी हैं ये लपटें और ये लपटें सूरज को पाना चाहती हैं। इन बीजों को पौधों में बदले बिना कोई तृप्त नहीं होपाता है। पूर्ण हुये बिना कोई मार्ग नहीं है। पूर्ण होना ही होता है : क्योंकि मूलतः, प्रत्येक बीज पूर्ण ही है।
 
प्रभात<br>
२४ जून १९६२
 
रजनीश के प्रणाम
 
 
पुनश्च: यह पत्र शायद भोपाल जाने के पूर्व न मिले। मिल जाये तो जानना मैं प्रतीक्षा में हूँ।
 
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;See also
:[[Krantibeej ~ 094]] - The event of this letter.
:[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters.
 
[[Category:Manuscripts|Letter 1962-06-24-am]] [[Category:Manuscript Letters (hi:पांडुलिपि पत्र)|Letter 1962-06-24-am]]

Latest revision as of 03:44, 25 May 2022

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 24 Jun 1962 in the morning.

This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 94 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 140 (2002 Diamond edition).

In PS Osho writes: "This letter might not be received before leaving for Bhopal. If received, then be informed that I am awaiting."

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म.प्र.)

प्रिय मां,
एक बर्ष हुआ। बीती बरसात में गुलतेवरी के फूल बोये थे। बरसा गई थी तो साथ ही फूल भी चले गये थे ; फिर उनके सूखे पौधों को अलग कर दिया था। इस बार देखता हूँ कि बरसा आई है तो गुलतेवरी के कल्ले फिर अपने आप ही फूट रहे हैं। जगह जगह भूमि को तोड़कर उनने झांकना शुरू किया है। एक बर्ष तक, विगत बर्ष छूटे बीजों ने प्रतीक्षा की है और अब उनको पुनः जन्म पाते देखना आनंदपूर्ण है। भूमि के अंधेरे में सर्दी और गर्मी वे प्रतीक्षा करते रहे हैं और अब कहीं जाकर उन्हें पुनः प्रकाश पाने का अवसर मिला है। इस उपलब्धि पर उन नवजात पौधों में मंगल संगीत छाया हुआ है। उसे मैं अनुभव करता हूँ।

सदियों पूर्व किसी अमृत कंठ ने गया था : ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय।’ अंधेरे से प्रकाश पाने की यह आकांक्षा किसमें नहीं है? क्या मनुष्य में – क्या प्रत्येक प्राणी में ऐसे बीज नहीं छिपे हैं जो प्रकाश पाना चाहते हैं? क्या वहां भी जन्मों जन्मों से अवसर की प्रतीक्षा और प्रार्थना नहीं है?

प्रत्येक के भीतर छिपे हैं ये बीज और इन बीजों से ही पूर्ण होने की प्यास उठती है। प्रत्येक के भीतर छिपी हैं ये लपटें और ये लपटें सूरज को पाना चाहती हैं। इन बीजों को पौधों में बदले बिना कोई तृप्त नहीं होपाता है। पूर्ण हुये बिना कोई मार्ग नहीं है। पूर्ण होना ही होता है : क्योंकि मूलतः, प्रत्येक बीज पूर्ण ही है।

प्रभात
२४ जून १९६२

रजनीश के प्रणाम


पुनश्च: यह पत्र शायद भोपाल जाने के पूर्व न मिले। मिल जाये तो जानना मैं प्रतीक्षा में हूँ।


See also
Krantibeej ~ 094 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.