Letter written on 28 May 1965 am

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Letter written to Ma Yoga Sohan on 28 May 1965 in the morning. It is unknown if it has been published or not.

आचार्य रजनीश

प्रभात :
२८/५/१९६५

प्यारी बहिन,
कल संध्या तेरा पत्र मिला है। राह से ही तूने लिखा इससे बहुत ख़ुशी हुई। नदी के पार मोड़ पर विलीन होती तेरी गाड़ी अभी भी दिखाई पड़ रही है। सब कितने शीघ्र विलीन होजाता है। हम ठीक से देख भी नहीं पाते की दृश्य शुन्य में खो जाते हैं और तब सब कैसा स्वप्न जैसा लगने लगता है ? थोड़ी ही घड़ियाँ पहले तू यहाँ थी, यह अब विश्वास भी कैसे आ सकता है ?

xxx

माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष।

xxx

तू अपनी ' इन्टीमेट मिस्ट ' यहाँ क्यों छोड़ गई है ? उसे अभी अभी देखा हूँ। उसे उठाया तो उसमें तेरे आंसू दिखाई पड़ने लगे और तेरी सुगंध आने लगी। वस्तुएं भी सानिध्य से व्यक्तियों को और उनके प्रभावों को अपने में पकड़ लेती है।

रजनीश के प्रणाम

पुनश्च : पूना पहुँचने के तार की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।


See also
Letters to Sohan ~ 012 - The event of this letter.
Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.