Letter written on 2 Mar 1962 om: Difference between revisions
m (Text replacement - "Madan Kunwar Parekh" to "Madan Kunwar Parakh") |
Dhyanantar (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[image:Letters to Anandmayee 973.jpg|right|300px]] | This is one of hundreds of letters Osho wrote to [[Ma Anandmayee]], then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 2 Mar 1962 in afternoon. | ||
This letter has been published in ''[[Krantibeej (क्रांतिबीज)]]'' as letter 71 (edited and trimmed text) and later in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 100 (2002 Diamond edition). | |||
{| class = "wikitable" style="margin-left: 50px; margin-right: 100px;" | |||
|- | |||
|[[image:Letters to Anandmayee 973.jpg|right|300px]] | |||
रजनीश | |||
११५, नेपियर टाउन<br> | |||
जबलपुर (म.प्र.) | |||
प्रिय मां,<br> | |||
टिक् टिक् टिक्.... घड़ी फिर से चलनी शुरू होगई है। वह अपने में तो चलती ही थी; मेरे लिये बन्द होगई थी या ठीक हो कि कहूँ कि मैं ही वहां बन्द हो गया था जहां कि उसका चलना है! | |||
एक दूसरे समय में चला गया था : आंखें बंद किये बैठा था और स्वप्न-चित्र चलने लगे थे : दिवा-स्वप्न : देखता रहा, देखता रहा.... काल का एक और ही क्रम था और फिर काल-क्रम ही टूट गया था। | |||
समय के बाहर खिसक जाना कैसा आनंद है। चित्त पर चित्र बंद होजाते हैं। उनका होना ही काल है : वह मिटे कि काल मिटा फिर शुद्ध वर्तमान ही रह जाता है। वर्तमान कहने को समय का अंग है; वस्तुतः वह काल-क्रम के बाहर है, अतीत है। उसमें होना ‘स्व’ में होना है। | |||
उस जगत से अब लौटा हूँ। सब कितना शांत है। दूर किसी पक्षी का गीत चल रहा है; पड़ोस में कोई बच्चा रोता है और एक मुर्गा बोल रहा है। | |||
ओह! जीना कितना आनंद है और अब मैं जानता हूँ कि मृत्यु भी आनंद है क्योंकि जीवन उसमें भी समाप्त नहीं होता है। वह जीवन की एक स्थिति है। | |||
दोपहर<br> | |||
२ मार्च १९६२ | |||
रजनीश के प्रणाम | |||
|} | |||
;See also | ;See also | ||
: | :[[Krantibeej ~ 071]] - The event of this letter. | ||
:[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters. | :[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters. |
Revision as of 08:33, 10 March 2020
This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 2 Mar 1962 in afternoon.
This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 71 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 100 (2002 Diamond edition).
रजनीश ११५, नेपियर टाउन प्रिय मां, एक दूसरे समय में चला गया था : आंखें बंद किये बैठा था और स्वप्न-चित्र चलने लगे थे : दिवा-स्वप्न : देखता रहा, देखता रहा.... काल का एक और ही क्रम था और फिर काल-क्रम ही टूट गया था। समय के बाहर खिसक जाना कैसा आनंद है। चित्त पर चित्र बंद होजाते हैं। उनका होना ही काल है : वह मिटे कि काल मिटा फिर शुद्ध वर्तमान ही रह जाता है। वर्तमान कहने को समय का अंग है; वस्तुतः वह काल-क्रम के बाहर है, अतीत है। उसमें होना ‘स्व’ में होना है। उस जगत से अब लौटा हूँ। सब कितना शांत है। दूर किसी पक्षी का गीत चल रहा है; पड़ोस में कोई बच्चा रोता है और एक मुर्गा बोल रहा है। ओह! जीना कितना आनंद है और अब मैं जानता हूँ कि मृत्यु भी आनंद है क्योंकि जीवन उसमें भी समाप्त नहीं होता है। वह जीवन की एक स्थिति है। दोपहर रजनीश के प्रणाम |
- See also
- Krantibeej ~ 071 - The event of this letter.
- Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.