Letter written on 30 Jul 1962 xm: Difference between revisions

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This letter has been published in ''[[Krantibeej (क्रांतिबीज)]]'' as letter 93 (edited and trimmed text) and later in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 145 (2002 Diamond edition).


This letter has been published, in ''[[Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो)]]'' on p 145 (2002 Diamond edition). We are awaiting a transcription and translation.
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रजनीश


And see also [[Letters to Anandmayee]]
११५, नेपियर टाउन<br>
जबलपुर (म.प्र.)
 
अर्धरात्रि:<br>
३० जुलाई १९६२
 
प्रिय मां --<br>
मैं शांति, आनंद और मुक्ति की बातें कर रहा हूँ। जीवन की वही केन्द्रीय खोज है। वह पूरी न हो तो जीवन व्यर्थ हो जाता है। कल यह कह रहा था कि एक युवक ने पूछा कि क्या सभी को मोक्ष मिल सकता है और यदि मिल सकता है तो फिर मिल क्यों नहीं जाता है?
 
एक कहानी मैंने उससे कही। गौतम बुद्ध के पास एक प्रभात एक व्यक्ति ने भी यही पूछा था। उन्होंने कहा था कि जाओ और नगर में पूछकर आओ कि जीवन में कौन क्या चाहता है? वह व्यक्ति घर घर गया था और संध्या को थका-मांदा एक फेहरिस्त लेकर लौटा था। कोई यश चाहता था, कोई पद चाहता था, कोई धन-वैभव-समृद्धि, पर मुक्ति का आकांक्षी तो कोई भी नहीं था! बुद्ध बोले थे कि अब बोलो : अब पूछो : मोक्ष तो प्रत्येक को मिल सकता है। वह तो है ही पर तुम एक बार उस ओर देखो भी तो? हम तो उस ओर पीठ किये खड़े हैं।
 
यही उत्तर मेरा भी है। मोक्ष प्रत्येक को मिल सकता है जैसे कि प्रत्येक बीज पौधा होसकता है। वह हमारी संभावना है। पर संभावना को वास्तविकता में बदलना है। इतना मैं जानता हूं कि यह बीज को वृक्ष बनाने का काम कठिन नहीं है। यह बहुत ही सरल है। बीज मिटने को राजी होजावे तो अंकुर उसी क्षण आजाता है। मैं मिटने को राजी होजाऊं तो मुक्ति उसीक्षण आजाती है। ‘मैं’ बंधन है; वह गया कि मोक्ष है।
 
‘मैं’ के साथ मैं संसार हूँ, ‘मैं’ नहीं कि मैं ही मोक्ष हूँ।
 
रजनीश के प्रणाम
 
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;See also
:[[Krantibeej ~ 093]] - The event of this letter.
:[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters.
 
[[Category:Manuscripts|Letter 1962-07-30-xm]] [[Category:Manuscript Letters (hi:पांडुलिपि पत्र)|Letter 1962-07-30-xm]]

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This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 30 Jul 1962 in midnight.

This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 93 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 145 (2002 Diamond edition).

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म.प्र.)

अर्धरात्रि:
३० जुलाई १९६२

प्रिय मां --
मैं शांति, आनंद और मुक्ति की बातें कर रहा हूँ। जीवन की वही केन्द्रीय खोज है। वह पूरी न हो तो जीवन व्यर्थ हो जाता है। कल यह कह रहा था कि एक युवक ने पूछा कि क्या सभी को मोक्ष मिल सकता है और यदि मिल सकता है तो फिर मिल क्यों नहीं जाता है?

एक कहानी मैंने उससे कही। गौतम बुद्ध के पास एक प्रभात एक व्यक्ति ने भी यही पूछा था। उन्होंने कहा था कि जाओ और नगर में पूछकर आओ कि जीवन में कौन क्या चाहता है? वह व्यक्ति घर घर गया था और संध्या को थका-मांदा एक फेहरिस्त लेकर लौटा था। कोई यश चाहता था, कोई पद चाहता था, कोई धन-वैभव-समृद्धि, पर मुक्ति का आकांक्षी तो कोई भी नहीं था! बुद्ध बोले थे कि अब बोलो : अब पूछो : मोक्ष तो प्रत्येक को मिल सकता है। वह तो है ही पर तुम एक बार उस ओर देखो भी तो? हम तो उस ओर पीठ किये खड़े हैं।

यही उत्तर मेरा भी है। मोक्ष प्रत्येक को मिल सकता है जैसे कि प्रत्येक बीज पौधा होसकता है। वह हमारी संभावना है। पर संभावना को वास्तविकता में बदलना है। इतना मैं जानता हूं कि यह बीज को वृक्ष बनाने का काम कठिन नहीं है। यह बहुत ही सरल है। बीज मिटने को राजी होजावे तो अंकुर उसी क्षण आजाता है। मैं मिटने को राजी होजाऊं तो मुक्ति उसीक्षण आजाती है। ‘मैं’ बंधन है; वह गया कि मोक्ष है।

‘मैं’ के साथ मैं संसार हूँ, ‘मैं’ नहीं कि मैं ही मोक्ष हूँ।

रजनीश के प्रणाम


See also
Krantibeej ~ 093 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.