Letter written on 3 Feb 1965: Difference between revisions

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Latest revision as of 04:13, 25 May 2022

Letter written to Ma Yoga Sohan on 3 Feb 1965. It has been published in Prem Ke Phool (प्रेम के फूल) as letter #2.

Acharya Rajnish

प्रिय बहिन,
प्रेम. तुम्हारा पत्र मिला है. आनंद में जानकर आनंदित होता हूं. मेरे जीवन का आनंद यही है. सब आनंद से भरें, स्वांस स्वांस में यही प्रार्थना अनुभव करता हूं.

इसे ही मैंने धर्म जाना है.

वह धर्म मृत है, जो मंदिरों और पूजागृहों में समाप्त हो जाता है. उस धर्म की कोई सार्थकता नहीं है,जिसका आदर निष्प्राण शब्दों और सिद्धांतों के ऊपर नहीं उठ पाता है.

वास्तविक और जीवित धर्म वही है, जो समस्त से जोड़ता और समस्त तक पहुंचाता है. विश्व के प्राणों से जो एक करदे, वही धर्म है. और, वे भावनायें प्रार्थना हैं ,जो उस अद् भुत संगम और मिलन की ओर लेचलती हैं.

और, वे समस्त प्रार्थनायें एक ही शब्द में प्रगट होजातीं है. वह शब्द प्रेम है.

प्रेम क्या चाहता है ? जो आनंद मुझे मिला है, प्रेम उसे सबको बाटना चाहता है. प्रेम स्वयं को बाटना चाहता है. स्वयं को बिना शर्त देदेना प्रेम है. बूंद जैसे स्वयं को सागर में विलीन कर देती है, वैसे ही समस्त के सागर में अपनी सत्ता को समर्पित कर देना प्रेम है, और वही प्रार्थना है.

एैसे ही प्रेम से आंदोलित होरहा हूं. उसके संस्पर्श ने जीवन अमृत और आलोक बना दिया है.

अब एक ही कामना है कि जो मुझे हुआ है, वह सबको हो सके. वहां सबको मेरा प्रेम संदेश कहें. ११ फ़रवरी को कल्याण मिल रही हो न ?

रजनीश के प्रणाम

३ फ़रवरी १९६५.

Jivan Jagruti Kendra. 115, Napier Town, JABALPUR (M.P.)

Partial translation
"Now there is one desire that what has happened to me – that can happen to all. Convey my message to all there. You are meeting me at Kalyan on 11th February, isn’t it?"
See also
Prem Ke Phool ~ 002 - The event of this letter.
Letters to Sohan and Manik - Overview page of these letters.