Letter written on 8 Jun 1962 pm: Difference between revisions

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Revision as of 04:29, 9 August 2021

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 8 Jun 1962 in evening.

This letter has been published in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 79 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 133 (2002 Diamond edition).

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म.प्र.)

मां,
एक चित्र देखकर लौटा हूं। परदे पर प्रक्षेपित विद्युत्‌ चित्र कितना मोह लेते हैं यह देखकर आश्चर्य होता है! जहां कुछ भी नहीं है, वहां सब-कुछ होआता है। दर्शकों को देखता था; लगता था कि वे अपने को भूल गये हैं। वे अब नहीं हैं और केवल विद्युत्‌ चित्रों का प्रवाह ही सब कुछ है।

एक कोरा परदा सामने है और पार्श्व से चित्रों का प्रक्षेपण हो रहा है : जो देख रहे हैं, उनकी दृष्टि सामने है और पीछे का किसी को कोई ध्यान नहीं है।

इस तरह लीला को जन्म मिलता है। मनुष्य के भीतर और मनुष्य के बाहर भी यही होरहा है।

वेदान्त इसे माया कहता है।

एक प्रक्षेप-यंत्र मनुष्य के मन की पार्श्व भूमि में है। मनोविज्ञान इस पार्श्व को अचेतन कहता है। इस अचेतन में संग्रहीत वृत्तियां – वासनाएं – संस्कार – चित्त के परदे पर प्रक्षेपित होते रहते हैं। यह चित्त-वृत्तियों का प्रवाह प्रतिक्षण – बिना विराम – चलता रहता है। चेतना दर्शक है – साक्षी है : वह इस वृत्ति-चित्रों के प्रवाह में अपने को भूल जाती है। यह विस्मरण अज्ञान है। यह अज्ञान मूल है – संसार का, भ्रमण का, जन्म-जन्म के चक्र का। इस अज्ञान से जागना चित्त-वृत्तियों के निरोध से होता है। चित्त जब वृत्ति शून्य होता है – परदे पर जब चित्रों का प्रवाह रुकता है तब ही दर्शक को अपनी याद आती है और वह अपने गृह को लौटता है।

चित्त वृत्तियों के इस निरोध का नाम है योग। यह सधते ही सब सध जाता है।

रात्रि:
८ जून १९६२

रजनीश के प्रणाम


See also
Krantibeej ~ 079 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.