Letter written on 9 May 1962: Difference between revisions
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रजनीश | |||
११५, नेपियर टाउन<br> | |||
जबलपुर (म.प्र.) | |||
९ मई १९६२ | |||
प्यारी मां,<br> | |||
रात्रि का एकांत। बीते सप्ताह की स्मृतियां ताजी सुगंध की तरह मन पर तैर रही हैं। सब बीतता है पर कुछ है कि जो बीत जाता है पर बीतता नहीं है। | |||
मैं उस अनबीते को इतना स्पष्ट देख पारहा हूँ कि कैसे कहूँ कि वह बीत गया है? सब अतीत होजाता है पर प्रेम अतीत नहीं होता है और उसके चिन्ह नहीं मिटते हैं। | |||
यह प्रेम अतीत क्यों नहीं होता है? क्योंकि यह उस समय अनुभव किया जाता है जब समय नहीं होता है और जब मन भी नहीं होता है। समय और मन के जो बाहर है, वह नित्य है। | |||
इस नित्य में द्वैत नहीं होता है : दुई नहीं होती है और वह प्रगट होता है जो है। | |||
मैं यह अनुभव कर कितने आनंद में हूँ कि इस नित्य – अमृत अनुभूति के स्वर आप तक पहुँच रहे हैं। | |||
xxx | |||
सबको मेरे विनम्र प्रणाम कहें। अभी अभी टहल कर आया हूँ : टहलते समय सबको आंगन में देखा है। तुम तो द्वार पर खड़ी हो कितना रोक रहीं थी और जानती हो, मां, अभी मेरा समय नहीं हुआ और तुम्हारे रोकने से ही टहलना छोड़कर पत्र लिखने बैठ गया हूँ। | |||
रजनीश<br> | |||
के<br> | |||
प्रणाम | |||
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:[[Bhavna Ke Bhojpatron ~ 053]] - The event of this letter. | |||
:[[Letters to Anandmayee]] - Overview page of these letters. | |||
[[Category:Manuscripts|Letter 1962-05-09]] [[Category:Manuscript Letters (hi:पांडुलिपि पत्र)|Letter 1962-05-09]] | |||
[[Category:Newly discovered since 1990|Letter 1962-05-09]] |
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This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 9 May 1962.
This letter has been published, in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 117 (2002 Diamond edition) with date 8 May 1962, it also printed on p 50 with correct date.
रजनीश ११५, नेपियर टाउन ९ मई १९६२ प्यारी मां, मैं उस अनबीते को इतना स्पष्ट देख पारहा हूँ कि कैसे कहूँ कि वह बीत गया है? सब अतीत होजाता है पर प्रेम अतीत नहीं होता है और उसके चिन्ह नहीं मिटते हैं। यह प्रेम अतीत क्यों नहीं होता है? क्योंकि यह उस समय अनुभव किया जाता है जब समय नहीं होता है और जब मन भी नहीं होता है। समय और मन के जो बाहर है, वह नित्य है। इस नित्य में द्वैत नहीं होता है : दुई नहीं होती है और वह प्रगट होता है जो है। मैं यह अनुभव कर कितने आनंद में हूँ कि इस नित्य – अमृत अनुभूति के स्वर आप तक पहुँच रहे हैं। xxx सबको मेरे विनम्र प्रणाम कहें। अभी अभी टहल कर आया हूँ : टहलते समय सबको आंगन में देखा है। तुम तो द्वार पर खड़ी हो कितना रोक रहीं थी और जानती हो, मां, अभी मेरा समय नहीं हुआ और तुम्हारे रोकने से ही टहलना छोड़कर पत्र लिखने बैठ गया हूँ। रजनीश |
- See also
- Bhavna Ke Bhojpatron ~ 053 - The event of this letter.
- Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.