Talk:Jin-Sutra, Bhag 4 (जिन-सूत्र, भाग चार) (4 volume set): Difference between revisions

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:अनुक्रम
:48: ध्यान है आत्मरमण
:49: मुक्ति द्वंद्वातीत है
:50: ध्यानाग्नि से कर्म भस्मीभूत
:51: गोशालक: एक अस्वीकृत तीर्थंकर
:52: छह पथिक और छह लेश्याएं
:53: पिया का गांव
:54: षट पर्दों की ओट में
:55: आज लहरों में निमंत्रण
:56: गुणस्थान
:57: प्रेम के कोई गुणस्थान नही
:58: पंडितमरण सुमरण है
:59: रसमयता और एकाग्रता
:60: त्रिगुप्ति और मुक्ति
:61: एक दीप से कोटि दीप हो
:62: याद घर बुलाने लगी

Latest revision as of 14:40, 21 January 2021