Krishna Smriti (कृष्ण स्मृति)
- सोलह कला संपूर्ण व्यक्तित्व वाले कृष्ण कोई व्यक्ति नहीं, एक संपूर्ण जीवन-दृष्टि के रूप में हमारे जीवन के कैनवस पर अपने रंग बिखेरते चलते हैं। भारतीय जन-मानस पर कृष्ण की इतनी गहरी छाप ने ओशो को समझने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। कृष्ण ने जीवन को उसके सभी आयामों में अंगीकार किया है। संस्कारों में बंधे व्यक्ति के लिए यह इतना आसान नहीं परंतु भले ही अवतार की छवि के रूप में, लेकिन कहीं तो उसका अंतरतम उसे सब स्वीकारने को आंदोलित करता है। उसी साहस को जुटाने के लिए शायद ओशो जैसे रहस्यदर्शी द्वारा इस पुस्तक में की गयी चर्चा सहायक होगी। २६ सितंबर १९७० में नव-संन्यास का सूत्रपात हुआ और २८ सितंबर को ओशो ने इस विषय पर जो प्रवचन दिया वह परिशिष्ट के रूप में इस पुस्तक में जोड़ा गया है जिसमें नव-संन्यास को लेकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर हैं।
- notes
- Previously published as Krishna: Meri Drishti Mein (कृष्णा: मेरी दृष्टि में).
- Discourses from Bombay: July 20, 1970 and Kullu (Manali): September 26 - October 5, 1970. Manali talks are those given at a Meditation Camp to the first group Osho "officially" initiated into sannyas.
- Translated into English as Krishna: The Man and His Philosophy
- time period of Osho's original talks/writings
- Jul 20, 1970 to Oct 5, 1970 : timeline
- number of discourses/chapters
- 21
editions
Krishna Smriti (कृष्ण स्मृति)
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