प्यारी शोभना,
प्रेम। तेरा पत्र मिला है -- अभी अभी। मैं बहुत से पत्र लिखकर बैठा था। पोस्ट स्टांप नहीं थे और किसी के आने की प्रतीक्षा कर रहा था ताकि पोस्ट ऑफिस से उन्हें बुलाया जा सके। और तू है कि अचानक ही ढेर सारे स्टांप लेकर आ गई है! देख! इसे ही कहते हैं न चमत्कार! आह! और तेरा वह पत्र जो कि तूने साथ में नहीं भेजा है! मैं उसे पढ़ता हूँ और पढ़ता हूँ और वह है कि पूरा होता ही नहीं है! लिखा हुआ तो चुक जाता है लेकिन अनलिखा चुके भी तो कैसे चुके? शब्द जहां नहीं हैं, वहां भी तो हृदय कुछ कहना चाहता है। और शरीर जहां स्पर्श को नहीं है, वहां भी तो हृदय कुछ स्पर्श करना चाहता है।
तू वहीं मुझे स्पर्श कर रही है।
और तू वही मुझसे कह रही है जो कि कहा नहीं जा सकता है।
लेकिन, आश्चर्य तो यही है कि जो नहीं लिखा जा सकता वह भी पढ़ा जा सकता है और जो नहीं कहा जा सकता, वह भी सुना सुना जा सकता है। क्योंकि, अभिव्यक्ति मनुष्य की सीमित है लेकिन अनुभूति तो असीम है।