Letter written on 19 Mar 1971

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Letter written by Osho on 19th of Mar 1971 to his cousin Ma Yoga Kranti. It has been published in Ghoonghat Ke Pat Khol (घूंघट के पट खोल) as letter #88 in early 1970s and also in Tera Tujhko Arpan... (तेरा तुझको अर्पण…) in 2001 (letter #12). There are English and Gujarati translations which available in the latter book.

acharya rajneesh

A-1 WOODLAND PEDDAR ROAD BOMBAY-26. PHONE: 382184

प्यारी मौनू,
प्रेम। सेहेई (Seihei) के शिष्य सुइबी (Suibi) ने एक दिन अपने गुरु से पूछा : "प्यारे गुरुदेव ! धर्म का मूल रहस्य क्या है?"
सेहेई ने कहा : "प्रतीक्षा करो और जब हम दोनों के अतिरिक्त यहां कोई भी नहीं होगा तब मैं तुझे बताऊंगा।"
और फिर उस दिन बहुत बार ऐसे मौके आये जबकि वे दोनों ही झोंपड़े में थे और ऐसे हर मौके पर सुइबी ने कहा : "गुरुदेव! अब हम दोनों ही यहां हैं और तीसरा कोई भी नहीं है" - लेकिन हर बार वह अपना प्रश्न पूरा भी न कर पाता कि सेहेई अपने ओठों पर अंगुली रखकर उसे चुप होने का इशारा कर देता!
ऐसे उसने बार बार बताया कि धर्म का मूल रहस्य मौन है - लेकिन सुइबी कुछ भी न समझा।
शब्द से ही समझने की जिद सत्य को समझने में बड़ी से बड़ी बाधा है।
और फिर सांझ हो गई और सेहेई का झोंपड़ा बिलकुल खाली हो गया।
सुइबी ने फिर पूछना चाहा लेकिन फिर वही ओठों पर रखी हुई अंगुली उत्तर में मिली।
और फिर रात उतर आई और पूर्णिमा का चांद आकाश में ऊपर उठ आया।
सुइबी ने कहा : "अब मैं और कब तक प्रतीक्षा करूं?"
तब सेहेई उसे लेकर झोंपड़े के बाहर आ गया।
सुइबी ने कहा : "यहां अब कोई भी नहीं - अब तो कुछ कहें?"
सेहेई ने तब सुइबी के कान में फुसफुसाकर कहा : "बांसों के ये वृक्ष यहां लम्बे हैं। और बांसों के वे वृक्ष वहां छोटे हैं। और जो जैसा है वैसा है इसकी पूर्ण स्वीकृति ही स्वभाव में प्रतिष्ठा है और स्वभाव धर्म है और स्वभाव में जीना धर्म का मूल रहस्य है।
निशब्द को जो न सुन सके - इसे शब्द से ज्यादा से ज्यादा बस इतना ही कहा जा सकता है।
शब्द में धर्म की अभिव्यक्ति है : तथाता (Suchness)।
निशब्द में धर्म की अभिव्यक्ति है : शून्यता (Voidness)।

रजनीश के प्रणाम

१९.३.१९७१

See also
Ghoonghat Ke Pat Khol ~ 088 - The event of this letter.