Letter written on 21 Feb 1971 (Jyoti)
Letter written to Ma Dharm Jyoti on 21 Feb 1971. It has been published in Pad Ghunghru Bandh (पद घुंघरू बांध) as letter 92.
Acharya Rajneesh A-1 WOODLAND PEDDAR ROAD BOMBAY-26. PHONE: 382184 प्यारी धर्म ज्योति, दुरूह था मार्ग और अनेक कष्टों से भरा हुआ। एक सूफी दरवेश भी हमारे साथ होलिया -- उसके पास न तो एक पैसा ही था, न ही कुछ और। हम सब तो ऊंटों पर थे, लेकिन वह पैदल ही चल रहा था। फिरभी उसके आनंद का कोई ठिकाना नहीं था और वह अक्सर कहता था: "न मैं किसी ऊंट का बोझ हूँ -- न कोई ऊंट ही मेरा बोझ है। न मैं किसी का मालिक हूँ, न किसी का गुलाम। न अतीत की चिन्तायें हैं मुझे, न भविष्य की। वर्तमान ही मेरे लिए काफी है। पल-पल ही है मेरा जीवन। हर श्वास लेता हूँ पूरी -- हर पल जीता हूँ पूरा।" लेकिन, हम सबके बीज सबसे ज्यादा चिंतित एक व्यापारी ने उसे लौट जाने की सलाह दी। भविष्य के खतरे बताये। अतीत की यात्राओं के अपने अनुभव गिनाये। और उसके न मानने पर उससे यह भी कहा कि तू अपने ही हाथों मौत के मुंह में जारहा है -- भोजन की कमी और पैदल-यात्रा की थकान तुझे निश्चत ही मार डालेगी। लेकिन, वह फकीर बस हंसता रहा -- गीत गाता रहा और आगे बढ़ता रहा। और फिर यात्रा रोज-रोज कठिन होने लगी। सबके चेहरे चिन्ता-दुश्चिंताओं की रेखाओं से भर गये। वह व्यापारी तो बिल्कुल विक्षिप्त-सा होगया। लेकिन, वह फकीर हंसता रहता और गाता रहता : "हर श्वास मैं लेता हूँ पूरी -- हर पल मैं जीता हूँ पूरा! (Fully I breathe, fully I live life!)" और फिर तो यात्रा एक एक पग असंभव होगई। उस अनुभवी यात्री की बातें सभी को सही मालुम होने लगीं। वह यात्रा बस एक दुख स्वप्न (Nightmare) ही होगई। पर वह फकीर गीत ही गाता रहा। उसके चेहरे की रौनक हर कठिनाई के साथ बढ़ने लगी। उसकी आंखों में अलौकिक आनंद के फूल खिलते मालुम होने लगे। और एक दिन वह व्यापारी अति-कठिनाइयों के कारण मर गया। और उस दरवेश ने व्यापारी की लाश के पास खड़े होकर कहा: "प्यारे! मैं नहीं मरा पद-यात्रा की कठिनाइयों में--और तुम ऊंट की सवारी और सुविधा मैं भी मर गये? असल में न समझ दिन में ही दीये जला लेते हैं और फिर रात्रि में चकित होते हैं कि प्रकाश क्यों नहीं है? (Fools burn lamps during the day and, at night they wonder why they have no light!) रजनीश के प्रणाम २१.२.१९७१ |
- See also
- Pad Ghunghru Bandh ~ 092 - The event of this letter.