Arvind Jain Notebooks, Vol 2: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
mNo edit summary |
mNo edit summary |
||
(8 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
;author | |||
:[[Arvind Kumar Jain]] | |||
;year | ;year | ||
Line 5: | Line 8: | ||
;notes | ;notes | ||
:41 pages | :41 pages | ||
: | :The second book in a series of five. | ||
;see also | |||
:[[Notebooks Timeline Extraction]] | |||
:[[Arvind Jain Notebooks, Vol 1]] | |||
:[[Arvind Jain Notebooks, Vol 3]] | |||
:[[Arvind Jain Notebooks, Vol 4]] | |||
:[[Arvind Jain Notebooks, Vol 5]] | |||
Line 32: | Line 39: | ||
| 1 | | 1 | ||
| rowspan="3" | | | rowspan="3" | | ||
: | :१६ अक्टूबर ६२ से - ३१ अक्टूबर' ६२ तक. | ||
:[ | :[१६ से २३ तक जबलपुर * २४ से ३१ तक गाडरवारा *] | ||
:जीवन के समग्र दर्शन कितने रहस्य और आनंद को अपने से व्यक्त करता है कि जीवन की परिपूर्ण सार्थकता अपने से दृष्टिगत हो जाती है | इस गहराई पर जाकर ही जो दीखता है -- उससे जीवन में समग्रता अपने से आती है | फिर मूलतः जो भी दीखना प्रारंभ होता है ---- उससे जीवन का दुख अपने से विसर्जित हो जाता है | इसके पूर्व तक जो भी जीवन के संबंध में जाना जाता है -— उससे मूल कारण जो दुख के होते हैं, वे विसर्जित हो ही नहीं सकते हैं | जो भी कारण जीवन को बिना देखे जाने जाते हैं, वे बहुत बाहरी और गौण होते हैं | उनसे कोई भी दुख के विसर्जन का प्रश्न नहीं उठता है | | :जीवन के समग्र दर्शन कितने रहस्य और आनंद को अपने से व्यक्त करता है कि जीवन की परिपूर्ण सार्थकता अपने से दृष्टिगत हो जाती है | इस गहराई पर जाकर ही जो दीखता है -- उससे जीवन में समग्रता अपने से आती है | फिर मूलतः जो भी दीखना प्रारंभ होता है ---- उससे जीवन का दुख अपने से विसर्जित हो जाता है | इसके पूर्व तक जो भी जीवन के संबंध में जाना जाता है -— उससे मूल कारण जो दुख के होते हैं, वे विसर्जित हो ही नहीं सकते हैं | जो भी कारण जीवन को बिना देखे जाने जाते हैं, वे बहुत बाहरी और गौण होते हैं | उनसे कोई भी दुख के विसर्जन का प्रश्न नहीं उठता है | | ||
Line 202: | Line 209: | ||
| 20 - 21 | | 20 - 21 | ||
| rowspan="3" | | | rowspan="3" | | ||
:' क्रोध विसर्जित होता जा रहा है - किसी भी स्थिति में क्रोध आने को नहीं है " इसे | :' क्रोध विसर्जित होता जा रहा है - किसी भी स्थिति में क्रोध आने को नहीं है " इसे १०-१५ बार कहकर सोएँ और कहें कि ' कल दिन भर मान शांत बना रहेगा | ' इस तरह आप १५ दिन तक प्रयोग चलने दें -- आप पाएँगे कि वर्षों का क्रोध अपने से विसर्जित हो गया है | | ||
:सुलभतम मार्ग है -- क्रोध को विसर्जित करने का और जीवन में आनंद में हो रहने का | | :सुलभतम मार्ग है -- क्रोध को विसर्जित करने का और जीवन में आनंद में हो रहने का | | ||
Line 255: | Line 262: | ||
| 26 - 27 | | 26 - 27 | ||
| rowspan="3" | | | rowspan="3" | | ||
:गाडरवारा आचार्य श्री का घर है | इसी नगर में आपने शिक्षण पाया और जीवन को विकास के पथ पर अग्रसर किया | यहाँ पर इस बार कुछ साथियों के सौजन्य से -- श्री ज़मनादास जी के बगीचे में | :गाडरवारा आचार्य श्री का घर है | इसी नगर में आपने शिक्षण पाया और जीवन को विकास के पथ पर अग्रसर किया | यहाँ पर इस बार कुछ साथियों के सौजन्य से -- श्री ज़मनादास जी के बगीचे में ५ दिवस तक ध्यान पर प्रयोग दिए गए | समस्त नगर में एक वातावरण का निर्माण हुआ और बहुत ही अच्छे परिणाम घटित हुए | रात्रि ९ से १० तक यह कार्यक्रम रखा जाता था | | ||
:पूर्व ध्यान के आवश्यक बातों को आचार्य श्री उल्लिखित करते - बाद ध्यान में हो आने के लिए - सुझाव दिया करते | | :पूर्व ध्यान के आवश्यक बातों को आचार्य श्री उल्लिखित करते - बाद ध्यान में हो आने के लिए - सुझाव दिया करते | | ||
Line 282: | Line 289: | ||
:तो शीघ्रगामी परिणाम घटित होंगे | कारण कि आपकी नींद में भी ध्यान सरकता रहेगा -- और इस तरह नींद आपकी ध्यान में परिवर्तित हो रहेगी | यह आज के युग की व्यस्तता को देखते हुए अत्यंत आवश्यक है | समय के अभाव के कारण यदि आप अतिरिक्त समय न दे सकें — तो नींद को तो आसानी से ध्यान में परिवर्तित किया जा सकता है | | :तो शीघ्रगामी परिणाम घटित होंगे | कारण कि आपकी नींद में भी ध्यान सरकता रहेगा -- और इस तरह नींद आपकी ध्यान में परिवर्तित हो रहेगी | यह आज के युग की व्यस्तता को देखते हुए अत्यंत आवश्यक है | समय के अभाव के कारण यदि आप अतिरिक्त समय न दे सकें — तो नींद को तो आसानी से ध्यान में परिवर्तित किया जा सकता है | | ||
:इन महत्व की सूचनाओं को देकर आचार्य श्री ध्यान में हो आने के लिए सुझाव देते | शीघ्र इतने सुखद परिणाम प्राप्त हुए -- जिनकी कोई कल्पना भी नहीं की जा सकती थी | | :इन महत्व की सूचनाओं को देकर आचार्य श्री ध्यान में हो आने के लिए सुझाव देते | शीघ्र इतने सुखद परिणाम प्राप्त हुए -- जिनकी कोई कल्पना भी नहीं की जा सकती थी | १५० - २०० व्यक्ति इस बीच ध्यान में सम्मिलित हुए -- उनमें से १०० व्यक्तियों पर आश्चर्यजनक परिणाम घटित हुए | शरीर तो शिथिल होकर गिर ही जाते थे | और काफ़ी गहराई में जाना हुआ | | ||
:सबसे बड़ी घटना तो जो घटी वह | :सबसे बड़ी घटना तो जो घटी वह | ||
Line 318: | Line 325: | ||
:स्थिति बहुत निम्न स्तर की है | उसके केंद्र निम्न स्तर के हैं | इससे निकृष्टता से वह प्रभावित होता है और शीघ्रता से हवा में विष फैल जाता है | भीतर से आदमी अशांत है --- अपनी इस अशांत अवस्था का प्रकाटिकरण करने के लिए उसे अवसर चाहिए | फिर, राष्ट्र की स्वतंत्रता की रक्षा का प्रश्न जब सामने आ जाता है, तो इससे अच्छा अवसर और क्या हो सकता है | देश-भक्ति के नाम पर जो भी हो जाय - वही उचित मान लिया जाता है | खूब खुलकर मौका मिलता है, अपने को शोर-गुल में उलझा लेने का -- और चेतना की बहुत निम्न वृत्तियाँ कार्यशील ही जाती हैं | यह एक बहुत ही असंस्कृत राष्ट्र का होना है | | :स्थिति बहुत निम्न स्तर की है | उसके केंद्र निम्न स्तर के हैं | इससे निकृष्टता से वह प्रभावित होता है और शीघ्रता से हवा में विष फैल जाता है | भीतर से आदमी अशांत है --- अपनी इस अशांत अवस्था का प्रकाटिकरण करने के लिए उसे अवसर चाहिए | फिर, राष्ट्र की स्वतंत्रता की रक्षा का प्रश्न जब सामने आ जाता है, तो इससे अच्छा अवसर और क्या हो सकता है | देश-भक्ति के नाम पर जो भी हो जाय - वही उचित मान लिया जाता है | खूब खुलकर मौका मिलता है, अपने को शोर-गुल में उलझा लेने का -- और चेतना की बहुत निम्न वृत्तियाँ कार्यशील ही जाती हैं | यह एक बहुत ही असंस्कृत राष्ट्र का होना है | | ||
:मेरा अपना देखना है -- चेतना को श्रेष्ठ स्थिति में ले आने का मार्ग हो - तो लाख में से | :मेरा अपना देखना है -- चेतना को श्रेष्ठ स्थिति में ले आने का मार्ग हो - तो लाख में से १०-१५ लोग पूरी तरह से तैयार होंगे | इससे युद्ध में प्रत्यक्ष भाग लेना या अप्रत्यक्ष उसे सहयोग देना -- अपने आप में छोटी बात है | मेरा कोई भी झुकाव उस तरह का नहीं है | | ||
|- | |- | ||
| [[image:man1346.jpg|400px]] | | [[image:man1346.jpg|400px]] | ||
Line 327: | Line 334: | ||
| 34 - 35 | | 34 - 35 | ||
| rowspan="3" | | | rowspan="3" | | ||
:फिर - भारत की सैनिक और युद्ध संबंधी पक्ष को हम लें -- तो जितनी प्रगती U.S.S.R. ने आज तक की है --- उतनी हम | :फिर - भारत की सैनिक और युद्ध संबंधी पक्ष को हम लें -- तो जितनी प्रगती U.S.S.R. ने आज तक की है --- उतनी हम १०० वर्ष में कर सकेंगे -- संदेह आता है | यह भी उनके सहयोग पर ही निर्भर है | हमारा कोई उनसे मुकाबला ही नहीं है | | ||
:और सबसे बड़ा मज़ा यह है कि यदि भारत भी अब हिंसा में विश्वास रखने लगता है -- तो विश्व में अहिंसा से भी कुछ हो सकता है -- यह मार्ग ही समाप्त हो जाता है | भारत के किसी भी व्यक्ति ने यह कहने का साहस ही नहीं किया -- कि अहिंसा भी एक मार्ग है -- और भारत उस पर चले -- तो ही केवल हल संभव हो सकता है | | :और सबसे बड़ा मज़ा यह है कि यदि भारत भी अब हिंसा में विश्वास रखने लगता है -- तो विश्व में अहिंसा से भी कुछ हो सकता है -- यह मार्ग ही समाप्त हो जाता है | भारत के किसी भी व्यक्ति ने यह कहने का साहस ही नहीं किया -- कि अहिंसा भी एक मार्ग है -- और भारत उस पर चले -- तो ही केवल हल संभव हो सकता है | | ||
:मेरा देखना है कि आपके यदि | :मेरा देखना है कि आपके यदि १,००० - शांति के प्रतिनिधि -- शस्त्रों से लैस सेना के समक्ष हों -- तो कोई भी व्यक्ति उनको मारने का साहस नहीं कर | ||
:सकता है | और में कहता हूँ कि कल्पना करिए -हमारे लोग उनकी हिंसा के आगे शब्द भी नहीं बोलते हैं -- तो कोई भी सैनिक आगे नहीं आ सकता है | बस केवल यही मार्ग है -- जिससे हल संभव है -- और जो कुछ हो रहा है -- उससे जो उलझनें होंगी, वह सब तो सामने आने को हैं -- ही | | :सकता है | और में कहता हूँ कि कल्पना करिए -हमारे लोग उनकी हिंसा के आगे शब्द भी नहीं बोलते हैं -- तो कोई भी सैनिक आगे नहीं आ सकता है | बस केवल यही मार्ग है -- जिससे हल संभव है -- और जो कुछ हो रहा है -- उससे जो उलझनें होंगी, वह सब तो सामने आने को हैं -- ही | | ||
Line 376: | Line 383: | ||
| 40 - 41 | | 40 - 41 | ||
| rowspan="3" | | | rowspan="3" | | ||
:और वारंगल में साम्यवादियों ने | :और वारंगल में साम्यवादियों ने २ माह तक राज्य किया इस बीच वहाँ जो हुआ -- मानवीय जीवन-स्तर उठा - उससे बाद में जो जिसे मिल चुका था - वह लेना संभव ही न हो सका | आज तक आधी दुनिया साम्यवादी प्रभाव में है | | ||
:और उनकी ताक़त बढ़ती हुई है | इससे वे युद्ध तो चाहते ही नहीं हैं -- उसे केवल आगे करते रहना चाहते हैं | उनका विश्वास है कि केवल ' साम्यवाद ' ही अब आने वाला है | और आने वाली दुनिया ' साम्यवादी ' होने को है | | :और उनकी ताक़त बढ़ती हुई है | इससे वे युद्ध तो चाहते ही नहीं हैं -- उसे केवल आगे करते रहना चाहते हैं | उनका विश्वास है कि केवल ' साम्यवाद ' ही अब आने वाला है | और आने वाली दुनिया ' साम्यवादी ' होने को है | |
Latest revision as of 16:55, 27 July 2020
- author
- Arvind Kumar Jain
- year
- Oct - Nov 1962
- notes
- 41 pages
- The second book in a series of five.
- see also
- Notebooks Timeline Extraction
- Arvind Jain Notebooks, Vol 1
- Arvind Jain Notebooks, Vol 3
- Arvind Jain Notebooks, Vol 4
- Arvind Jain Notebooks, Vol 5