Talk:Diya Tale Andhera (दीया तले अंधेरा): Difference between revisions
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:1. शरीर से तादात्म्य के कारण आत्मिक दीये के तले अंधेरा | |||
:2. अकंप चित्त में सत्य का उदय | |||
:3. समाज की उपेक्षा कर स्वयं में छिपे ध्यान-स्रोत की खोज करें | |||
:4. मृत शब्दों से जीवित सत्य की प्राप्ति असंभव | |||
:5. मृत्यु के सतत स्मरण से अमृत की उपलब्धि | |||
:6. प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाहिं | |||
:7. कृत्य नहीं, भाव है महत्वपूर्ण | |||
:8. द्वैत के विसर्जन से एक-स्वरता का जन्म | |||
:9. सत्य और असत्य के बीच चार अंगुल का अंतर | |||
:10. श्रद्धा की आंख से जीवित ज्योति की पहचान | |||
:11. बुद्धि के अतिक्रमण से अद्वैत में प्रवेश | |||
:12. मन से मुक्त होना ही मुक्ति है | |||
:13. मृत्यु है जीवन का केंद्रीय तथ्य | |||
:14. प्रकृत और सहज होना ही परमात्मा के निकट होना | |||
:15. संतत्व का लक्षणः सर्वत्र परमात्मा की प्रतीति | |||
:16. धर्म का मूल रहस्य स्वभाव में जीना है | |||
:17. अतियों से बचकर मध्य में जीना प्रज्ञा है | |||
:18. समर्पित हृदय में ही सत्य का अवतरण | |||
:19. परिधि के विसर्जन से केंद्र में प्रवेश | |||
:20. ‘मैं’ कीमुक्तिनहीं, ‘मैं’ से मुक्ति |
Revision as of 08:59, 2 September 2018
Subtitle added on the basis of info received from Shailendra. There is a subtitle visible in the Diamond cover image but just had not been done until now. 2002 Rebel cover image too low-res to guarantee the same subtitle but felt to be a reasonable supposition. -- doofus-9 02:11, 18 November 2017 (UTC)
TOC:
- 1. शरीर से तादात्म्य के कारण आत्मिक दीये के तले अंधेरा
- 2. अकंप चित्त में सत्य का उदय
- 3. समाज की उपेक्षा कर स्वयं में छिपे ध्यान-स्रोत की खोज करें
- 4. मृत शब्दों से जीवित सत्य की प्राप्ति असंभव
- 5. मृत्यु के सतत स्मरण से अमृत की उपलब्धि
- 6. प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाहिं
- 7. कृत्य नहीं, भाव है महत्वपूर्ण
- 8. द्वैत के विसर्जन से एक-स्वरता का जन्म
- 9. सत्य और असत्य के बीच चार अंगुल का अंतर
- 10. श्रद्धा की आंख से जीवित ज्योति की पहचान
- 11. बुद्धि के अतिक्रमण से अद्वैत में प्रवेश
- 12. मन से मुक्त होना ही मुक्ति है
- 13. मृत्यु है जीवन का केंद्रीय तथ्य
- 14. प्रकृत और सहज होना ही परमात्मा के निकट होना
- 15. संतत्व का लक्षणः सर्वत्र परमात्मा की प्रतीति
- 16. धर्म का मूल रहस्य स्वभाव में जीना है
- 17. अतियों से बचकर मध्य में जीना प्रज्ञा है
- 18. समर्पित हृदय में ही सत्य का अवतरण
- 19. परिधि के विसर्जन से केंद्र में प्रवेश
- 20. ‘मैं’ कीमुक्तिनहीं, ‘मैं’ से मुक्ति