Gunge Keri Sarkara (गूंगे केरी सरकरा): Difference between revisions

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description =अकथ कहानी प्रेम की, कछु कही न जाय।
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:गंूगे केरी सरकारा, खाइ और मुसकाय।
:गूंग केरी सरकारा, खाइ और मुसकाय।
:एक-एक शब्द बहुमूल्य है। उपनिषद फीके पड़ जाते हैं कबीर के सामने। वेद दयनीय मालूम पड़ने लगता है। कबीर बहुत अनूठे हैं। बेपढ़े-लिखे हैं, लेकिन जीवन के अनुभव से उन्होंने कुछ सार पा लिया है। और चूंकि वे पंडित नहीं हैं, इसलिए सार की बात संक्षिप्त में कह दी है। उसमें विस्तार नहीं है। बीज की तरफ उनके वचन हैं- -बीज-मंत्र की भांति।
:एक-एक शब्द बहुमूल्य है। उपनिषद फीके पड़ जाते हैं कबीर के सामने। वेद दयनीय मालूम पड़ने लगता है। कबीर बहुत अनूठे हैं। बेपढ़े-लिखे हैं, लेकिन जीवन के अनुभव से उन्होंने कुछ सार पा लिया है। और चूंकि वे पंडित नहीं हैं, इसलिए सार की बात संक्षिप्त में कह दी है। उसमें विस्तार नहीं है। बीज की तरफ उनके वचन हैं- -बीज-मंत्र की भांति।



Revision as of 20:15, 10 May 2014


अकथ कहानी प्रेम की, कछु कही न जाय।
गूंग केरी सरकारा, खाइ और मुसकाय।
एक-एक शब्द बहुमूल्य है। उपनिषद फीके पड़ जाते हैं कबीर के सामने। वेद दयनीय मालूम पड़ने लगता है। कबीर बहुत अनूठे हैं। बेपढ़े-लिखे हैं, लेकिन जीवन के अनुभव से उन्होंने कुछ सार पा लिया है। और चूंकि वे पंडित नहीं हैं, इसलिए सार की बात संक्षिप्त में कह दी है। उसमें विस्तार नहीं है। बीज की तरफ उनके वचन हैं- -बीज-मंत्र की भांति।
notes
Discourses on ten selected verses by Kabir, the 15th century Indian poet-mystic
translated into English as The Great Secret
time period of Osho's original talks/writings
Jan 11, 1975 to Jan 20, 1975 : timeline
number of discourses/chapters
10


editions

Gunge Keri Sarkara (गूंगे केरी सरकरा)

Year of publication : 2012
Publisher : Diamond Books
ISBN 9350831961) (click ISBN to buy online)
Number of pages : 240
Hardcover / Paperback / Ebook : P
Edition notes :