Jeevan Sangeet (जीवन संगीत)
- जो वीणा से संगीत के पैदा होने का नियम है, वही जीवन-वीणा से संगीत पैदा होने का नियम भी है। जीवन-वीणा की भी एक ऐसी अवस्था है, जब न तो उत्तेजना इस तरफ होती है, न उस तरफ। न खिंचाव इस तरफ होता है, न उस तरफ। और तार मध्य में होते हैं। तब न दुख होता है, न सुख होता है। क्योंकि सुख एक खिंचाव है, दुख एक खिंचाव है। और तार जीवन के मध्य में होते हैं--सुख और दुख दोनों के पार होते हैं। वहीं वह जाना जाता है जो आत्मा है, जो जीवन है, जो आनंद है।
- आत्मा तो निश्र्चित ही दोनों के अतीत है। और जब तक हम दोनों के अतीत आंख को नहीं ले जाते, तब तक आत्मा का हमें कोई अनुभव नहीं होगा।
- ~ ओशो
- पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
- क्या आप दूसरों की आंखों में अपनी परछाईं देख कर जीते हैं?
- क्या आप सपनों में जीते हैं?
- हमारे सुख के सारे उपाय कहीं दुख को भुलाने के मार्ग ही तो नहीं हैं?
- प्रेम से ज्यादा पवित्र और क्या है?
- क्या आप भीतर से अमीर हैं?
- जीवन का अर्थ क्या है?
- notes
- Talks given possibly at an early meditation camp in Udaipur. Audio is available, as is an e-book with nine discourses. See discussion for a TOC and other infobits.
- Not to be confused with Jeevan Sangeet (जीवन संगीत) (4 talks), a 4 talks on Gorakh(nath).
- Translated into English as Falling in Love with Darkness.
- time period of Osho's original talks/writings
- ≤ 1969 : timeline
- number of discourses/chapters
- 10
editions
Jeevan Sangeet (जीवन संगीत)
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Jeevan Sangeet (जीवन संगीत)ध्यान साधना पर प्रवचन (Dhyan Sadhana Par Pravachan)
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Jeevan Sangeet (जीवन संगीत)ध्यान साधना पर (Dhyan Sadhana Par)
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