प्यारी सोहन,
प्रेम। अमरावती के लिए कल संध्या निकल ही रहा था कि तेरा पत्र मिला। कितनी प्रतीक्षा करवाई ? कुछ भी न लिख लेकिन लिखा जल्दी करे। कितनी बार कहा कि लिखने को कुछ भी न सूझे तो खाली कागज ही भेज दिया कर ! तू कोई भूरबाई से कम थोड़ी ही है !
इधर आ तो गया हूँ लेकिन लग रहा था कि जैसे पूना ही जारहा हूँ ! वस्तुतः ये तारीखें दीं तो थीं तुझे ही ! पर तूने ही नहीं बुलाया तो क्या करूँ ? माणिक बाबू को प्रेम। बच्चों को आशीष।
संभवतः मार्च में दो दिन के लिए अहमदाबाद जाऊँ। तू तो साथ चलेगी न ?
रजनीश के प्रणाम
Partial translation
"Night: 18 Feb 1966
Circuit House
Amravati (Maha)
Dear Sohan,
Love. I was about to start for Amravati yesterday evening that received your letter."
...
Probably for two days in March I may go to Ahmedabad. You would be coming along, isn’t it?"